नागपचारिणी पत्रिका (१)परनीदास जू को संकटमोचन-रचना-काल पक्षात लिपि- काम संवत् १८१८ वि० । विषय-प्राचीन तथा अर्वाचीन भक्तों का गुण- गान | ग्रंथ भीखासाहब के रामसहस्रनाम के साथ एक ही हस्तलेख में है। (२) महराई गोसाई धरनीदास-रचना-काल तथा लिपि-काल प्रशात । विषय - आध्यात्मिक कथा । यह बहुत उत्तम रचना है। 'महराई' का अर्थ महता है। (३) उघवाप्रसंग-रचना-काल और लिपि-काल प्रज्ञात । विषय- आध्यात्मिक ज्ञान-वर्णम । उधवा एक स्थानीय गीत विशेष है। प्रथके साथ पद भी हैं। (.) पद-रचना-काल तथा लिपि काल अप्राप्त । विषय-भक्ति और शानोपदेश । ये पद पवा प्रसंग के साथ एक ही हस्तलेख में हैं। (५) बोधलीला-रचना-काल तथा लिपि-काम अप्राप्त । विषय- भक्ति और ज्ञानोपदेश। (६) ककहरा-रचना-काल तथा लिपि काल अप्राप्त । विषय- अक्षरक्रम से चौपाइयाँ रखकर ज्ञानोपदेश। रचयिता के संबंध में इतना ही मिलता है कि ये विनोदानंद के शिष्य थे, जैसा प्रथम रचना में लिखा है। परंतु श्रावण, संवत् १९६४ के'कल्याण' के 'संत अंक' में निकले श्री परशुराम चतुर्वेदी एम० ए०, पल-एल. बी. के 'बाबा धरनीदास जी' नामक लेख से पता चलता है किये जाति के कायस्थ थे। जिला सारन (विहार प्रांत) के माझी गाँव के रानेवाले थे। अपने पिता का मृत्यु-संवत् इन्हेांने १७१३ वि० दिया है, अतः यहोइनकासमय मोनिश्चित होता है । इनकी गुरु-परंपरा भी मिलती है। नवनिधिदास बाबा की 'मंगलगीता' महत्त्वपूर्ण रचना है, जिसकी एक अपूर्ण प्रति खोज में मिली है। इसमें वर्णित विषयों के नाम कवित गंगा जी के, कृष्ण पुकार, ककहरा, पद, फगुमा, बारहमासा, सिद्धांत, रामखेलावन वाक्य प्रादि हैं । अंतिम विषय 'रामखेलावन वाक्य' रचयिता और उनके पुत्र रामखेलावन के संवाद के रूप में है। रचना-काल संवत १५ वि और लिपि-काल संवत् १६७४ वि० है। रचना अधिकांशतः पर्वी भाषा में है तथा 'घांटो' जैसे स्थानीय गीत को अपनाया गया रचयिता का परिचय ग्रंथ से नहीं मिलता। पर ग्रंथ-स्वामी द्वारा जो इन्हीं के वंशज है) ज्ञात हुमा किये जाति के कायस्थ और लखौ- खिया प्राम ( जिला पलिया ) के रहनेवाले थे। नवनिधिदास पावा के गुरु पहराम ( रामचंद्र) थे, जिनको रवी धरणचंद्रिका' उचकोटिकीरत.
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