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प्राचीन हस्तलिखित हिंदी-ग्रंथों की खोज


नांमों में से है।खोज रिपोर्ट (ब-२१२) में उल्लिखित नवनिषिदास मा प्रस्तुत रचयिता ही है । उसमें इनको कबीर का अनुयायी कहा है, जो ठीक नहीं। ये सगुणोपासक थे, यद्यपि निर्गुण भक्ति संबंधी रचनाएँ भी लिखी।

रीति-ग्रंथकार

रसानंद---का नायिका मेद विषयक विशाख ग्रंथ 'वृजेंद्रप्रकाश' मिला है। इसका रखना-काल संवत् १८६१ और लिपि काल संवत् १८१६वि० है। रचयिता ब्रज-मंडल में गंगा-यमुना के बीच स्थित विश्वपुर गाँव के निवासी थे, जो कौशिक मुनि का स्थान कहा जाता है। भरतपुर के महाराज बलवंतसिंह के ये आश्रित थे। अनुमानता रचयिता के गुरु का नाम श्रीगोपाल था।

सेवक या सेवकराम के निम्नलिखित दो ग्रंथों के विवरण लिए गए है- (१) वागविलास-अपूर्ण प्रति, रचना-कास तथा लिपि-काल अज्ञात । विषय---काशी में महाराज हरिशंकर (काशी नरेशों के वंशज )द्वारा लगाए गए एक बाग का विस्तृत, मध्य और मनोरंजक वर्णन। ये उक्त नरेश के आश्रित थे।

वाग्विलास---खंडित प्रति । रचना-कास तथा लिपि-काल अज्ञात विषय नायिका मेद । यह पहले खोज रिपोर्ट (२३-३८३) में आ गया है। इसमें विषय स्पष्ट करने के लिये ब्रजभाषा का आश्रय भी लिया है।क्षखोज रिपोर्ट (ई. सं.२८१) में इन्हें देवकीनंदनसिंह के आश्रित कहा है, जो भूख है। उक्त रिपोर्ट में इनके बरवा मसिख' का उल्लेख है। इन्होंने अपने आश्रयदाता हरिशंकर द्वारा सं० १९१३ वि० (सन् १८५७ ई०) के गदर में अंगरेजों की सहायता करने का उल्लेख किया है। इससे निश्चित है कि ये इस समय वर्तमान थे। वाग्विलास' में इन्होंने ठाकुर, धनीराम, शंकर और मान के कवित्त सबैये भी दिए । प्रथांत में अपने समसामयिक बहुत से कवियों का नामोंल्लेख किया है।

कुछ अन्य रचनाएँ

अज्ञातनामा लेखकों की रचनामों में से 'कामरूप का किस्सा' उल्लेखनीय है। रखना-शैली तथा मंगलाचरण में अल्लाह को वंदना होने से यह किसी मुसलमान लेखक की रचना जान पड़ती है । इसमें अवध के राजकुमार कामरूप और सरनद्वीप को राजकुमारी कामकला की प्रेम-

(देखिए पृष्ठ १७४)

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१---प्राचार्य रामचंद्र शुक्ल कृत हिंदी-साहित्य का इतिहास, प्रर्दित संस्करखा,