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पृष्ठ:नागरी प्रचारिणी पत्रिका.djvu/३७

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समीक्षा

समीक्षा धूपकाँह-रचयिता-श्री दिनकर । प्रकाशक-मार० सिंह। प्राप्ति- स्थान-उदयाचल, पटना । मूल्य ११)। 'धूपछाँह' श्री दिनकर द्वारा रचित और अनुदित प्रायः पानोपयोगी कवितामों का संग्रह है। कवि के हो शब्दों में इसमें 'धूप कम और छाया अधिक है।' अर्थात् मौलिक रचनाएँ कम और अनूदित अथवा दूसरे कवियों को रचनाओं के अनुकरण पर लिखित रचनाएँ अधिक है। जिनकी रचनाओं के अनुकरण पर कुछ रचनाएँ हैं उनके नाम ये है-सर्वश्री रवींद्रनाथ ठाकुर, सरोजिनी नायडू, गाड्रफे, सत्येंद्रनाथ दत्त, रापर्ट सदी, अकबर, लांगफेलो आदि । स्मरण यह रखना है कि इनमें अनुकरण हो किया गया है, कविताएँ मौलिक कवितामों से कम मार्मिक नहीं हैं। अनुकृत रचनाओं में प्रायः पेसो ही हैं जिनमें समाज के विषम जीवन के चित्र है। बच्चे का तकिया' नामक कविता में असहाय बच्चों के चित्र देकर उनके सुख के लिये भगवान से प्रार्थना है। इसी प्रकार 'दो बीघा जमीन' में स्वस्थान का प्रेम तथा जमोदारों को ज्यादती का मार्मिक चित्र है। 'कवि का मित्र' और नींद' व्यंग्य तथा हास्यपूर्ण रचनाएँ हैं। इस प्रकार अनुकून और अनूदित ग्वनामों में बालकों के हदय और मन को उत्साहित और परिष्कृत करने को प्रभत प्रेरणा है। मौलिक रचनाएँ भी इसो ढंग की हैं, जिनमें कर्म-क्षेत्र में उतरने की पूरी प्रेरणा है। शक्रि और सौन्दर्य' नामक कविता में एक स्थान पर कहा गया है- जीवन का वन नहीं सजा जाता कागज के फूलों से, अच्छा है, दो पाट इसे जीवित बलवान बबूलों से। 'कैंची और तलवार' में मार्मिक एतिहासिक इतिवृत्त द्वारा अपने देश और अपनी जाति के मर्यादा पालन के लिये प्रेरित किया गया है। 'पुस्तकालय' नामक कविता का लक्ष्य है पुस्तकालय की महत्ता स्थापित कर इस ओर बालकों को आकृष्ट करना । 'धृपछाँह' की रचनाओं द्वारा बालकों का पूरा मनोरंजन और उपकार होगा, इसमें संदेह नहीं।। इन कविताओं की भाषा और अभिव्यंजना-शैली सीधी-सादी और चलती होने के कारण बालकों के लिये बोधगम्य है। पानी की बाल', 'कवि का मित्र' तथा 'नींद' कविताएँ है तो अनूदित और अनुकत हो, परंतु इनमें श्री दिनकर की हास्य, व्यंग्य और विनोद की शिष्ट और मसन वृधि दर्शन होते हैं। यदि इस क्षेत्र में ये कुछ विशेष कार्य करें तो हिंदी-काव्य की षह परपरा अक्षुण्ण रहे जिसको स्थापना श्री निराला ने अपनी म्यंग्यात्मक कविताओं द्वारा की है।