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छिताई-चरित


के राठौड़ों में, जिनका वंशज भास्थान या यशस्वाद था, पालांत या देवांत नाम होते थे, जैसे चंद्रदेव, मदनपाल । तो क्या हरपाल यशस्थान एक ही हैं रुद्र कवि ने लिखा है कि यशस्वान् बे दुराक्रम के समय देवगिरि के किले में रहते हुए तलकुंकरण ग्राम की रक्षा की। यह दुराक्रम यदि अला- उहीम का मानें तो कथा जिस सौरसो का वहाँ विद्यमान होना लियतो है वह इससे मिल जाता है। क्या एक ही व्यक्ति के नाम हरपालदेव, प्रास्थान, यशस्वान् और सौरसी थे अथवा केवल नाम की भ्रांति है। अभी इतना ही कहा जा सकता है कि कथा को घटना का समर्थन संस्कृत का 'राष्ट्रौढ़वंश महाकाव्य' करता है।

अब देवगिरि पर आक्रमण करने में अलाउद्दीन के मंतम्य का विचार कीजिए और खोज देखिए कि रामदेव की कन्या पकड़कर दिल्ली मेजी गई या नहीं। अब्दुल्ला यस्साफ के कथन से प्रमाणित है कि रामदेव ने स्वरक्षा के लिये कन्या का विवाह अलाउद्दीन से कर दिया । पर उसके अनुसार यह बात पहले आक्रमण को है. दूसरे आकमण की उसने चर्चा ही नहीं की। क्या उसने संक्षेप की प्रवृत्ति के कारण दो युद्धों की बातों का घाल मेल कर दिया बगनी लिग्यता है कि मलिक काफूर रामदेव तथा उसके स्त्री-बच्चों को बंदी बनाकर दिल्ली ले गया और वहाँ छह महीने तक रोक रखने के बाद उन्हें मसंमान बिदा कर दिया। अलाउद्दीन एक तो किसी पर क्या दिखाना जानता नहीं था दूसो उसको क्या को छह महीने तक कौन सी बात दबाए रहो। कोई राजनीतिक घात इसके मुल में हो नहीं सकती। अतः अलाउद्दीन ने निश्चय ही कुविचार से देवगिरि पर आक्रमण किया था। जबछिनाई उसके यहाँ आई तब उसको अविवख पति-भक्ति को वह डिगा न सका। गमदेव भी इस बीच उसकी संमान-रक्षा का सतत प्रयत्न करता रहा, जिससे अलाउद्दीन ने विचार बदल दिया। उसने रामदेव को 'रायरायान' की पदयो और एक लाख टका देकर पूर्ण राजसी संमान के साथ सपरिवार विदा किया। उसे उसका राज्य तो लोटा हो लिया, गुजरात के समुद्र के किनारे का नवसारी का इलाका भी सौंप दिया। अलाउद्दीन जैसा द्रव्यं पिशाच एक लाख टंका भला किसी को क्या देता! रहो उसकी विलासिताको बात, सो उसके समकालीन मियाँ अमीर खुसरो की 'आशिका' हो प्रमाण है। माना कि उसमें गणना आदि
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१---जियाउद्दीन बानीस तारीखे फीरोजशाही, पृष्ठ २००।

२---किंकेड और पारसनीसकृत ए हिस्ट्री आव वि मराय पीपुल, प्रथम भाग,छठा अध्याय,पृष्ठ ४५ ।