पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/१६

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नाट्यसंभव।

अब चलो यहां से!

दूसरी अप्सरा। हां बहिन! चलो हमलोग भी चलकर भगवती की पूजा करें।

(दोनों गईं)

परदा गिरता।

इति विष्कम्भक।


पहिला दृश्य।

(रङ्गभूमि का परदा उठता है)

स्थान नन्दनवन-माधवीकुंज।

(उदासीन बेश बनाये आगे २ इन्द्र औपीछे २ सोने का आमा लिए प्रतिहारी आता है)

इन्द्र। (घूम कर) अहा! यह किसने कानों में अमृत की चंद टपकाई? (हे सुख सूरज उद इत्यादि फिर से पढ़कर) हा क्या वह दिन जल्दी आवेगा? हे प्यारी पुलोमजे! कय तुम्हारी माधुरी मूर्ति का दर्शन होगा? प्रिये! तुम्हारे वचनामृत के प्यासे इन कानों की कब वृति होगी? अरे निर्दई विधाता! हमने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने बैठे बैठाये वैर विसाह कर