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नाट्यसम्भव।


जांता उठल्लू से नाता!!! क्या करैं बड़ी बेबसी है। ब्रह्मचारी बनकर गुरु से विद्या पढ़ना शुद्ध झखमारही नहीं, यरन जान पर खेलना है। रात दिन पिसते २ देह सूख कर कांटासी होगई। देखैं घर पहुंचते २ हाड़ चाम भी रहते हैं कि नहीं। (मन में) अपने राम तो अब खुर्या जाला और जपमाला जल में डालकर यहांसे रमते बनेंगे।

रैवतक। ओ सिड़ी। एक नई कथा सुनावैं?

दमनक। सिड़ी कहने वाले के सिर पर तिड़ी पड़ती है। यह जानते हैं कि नहीं!

रैवतक। तुम तो बेपानी मेजा उतारने लगते हौ।

दमनक। तुम्हारी बातही जो वे सिरपैर की होती है। अच्छा अपनो रामकहानी तो सुनाओ।

रैवतक। हमारी नहीं। स्वर्ग की।

दमनक। ऐं स्वर्ग की।

रैवतक। हां वर्ग में भी इन्द्र की।

दमनक। क्या! क्या!! कहो तो सही?

रैवतक। हमने गुरुजी से सुना है कि हत्यारे असुर लोग इन्द्राणी को हरण करके लेगए हैं, इसलिये इन्द्र बहुतही उदास हो रहा है।

दोहा।
बहै सहस लोचन सदां, द्वै सहस्र जलधार।