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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/३२

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नाट्यसम्भव।

को सिखाने आया है। बचा! यह पण्डिताई अपने घर छौंकना।

रैवतक। हां जी! अच्छी बात कहुई लगतीही है। रहो बचाजी! हम गुरूजी से तुम्हारी सारी दिठाई कह देंगे, तब देखना तुम्हारी कैसी पूजा होती है। समझाने से उलटा गाली गलौज करते हौ।

दमनक। पर पहिले छेड़छाड़ तो तुम्ही करते हौ? (मनमें) यह रैवतवा साला बड़ा खोटा है। जो कहीं सचमुच गुरुजी से कह देगा तो बहा बखेड़ा मचेगा। इसलिये इसे चटकाना अच्छा नहीं। नजाने आज कहां से यह दुष्ट हमारे संग लगा (प्रगट) नहीं भैया! रैवतक! अब कभी ऐसी बात न कहेंगे। जाने दो, देखो हम तुम देना एक जगह रहते हैं, इसलिये आपस में टंटा फरना अच्छा नहीं है। लो देखो! हम तुम्हें हाथ जोड़ते हैं (हाथ जोड़ता है)।

रैवतक। (उसका हाथ थाम कर) सुनो भाई! यह ऋषियों का आश्रम है। यहां पर बिना विचारे कोई बात मुख से नहीं निकालनी चाहिये। अभी जो कहीं कोई सुन लेता वा शाप वाप दे बैठता तो लेने के देने पड़ जाते, कहीं पता भी न लगता और तुम्हारे सङ्ग हम भी सोने जाते।

दमनक। (मन में) वाहरे ठाठ! इतना कहा, मानो बहुत