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पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/४६

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नाट्यसम्भव।

भरत। शास्त्रों में और भी असंख्य वचन इसकी महिमा से भरे पड़े हैं।

रैवतक। अहा! इतने दिनों तक पढ़ने से जो आनन्द नहीं मिला था वह आज प्राप्त भया।

दमनक। भाई यह तुमने सच कहा।

भरत। अच्छा! अब तुम दोनो काव्य की महिमा वाली वह गीत गाओ जो कल हमने बताई है।

दमनक और रैवतक। जो आज्ञा।

(भरतमुनि बीन बजाते हैं और दोनो मृदङ्ग बजाकर गाते हैं)

राग ईमन।

(९) जग में जगदायक कविता है।
अर्थ धर्म अरु काम मोक्ष जव मिलै, बच्यो अरु का है?
लोकरीति औ नीति सिखावतआनंद देतमहा है।
बनिता ऐसो मधुरबोल कहि उपदेसतकरि चाहे॥


काव्यालापाश्च ये केचिद् गीतिकाव्यखिलामि च।
शब्दमूर्त्तिधरस्यैते विष्णोरंशा महात्मनः॥

(विष्णुपुरारणे)

(१) काव्यं यशतेऽर्थकृते-
व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
सद्यः परनिर्वृतये-
कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे॥

(काव्यप्रकाशे)