पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/५२

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नाट्यसम्भव।

बुद्धिं प्रशस्ताम्। विद्ये वेदान्तगीते श्रुतिपरि पठिते मोक्षदे मुक्तिमार्गे, मात्रातीतस्वरूपेभव मम वरदे शारदे शुभ्रहारे॥

(भरतमुनि चरणों पर पुष्पाञ्जली चढ़ाकर साष्टांग प्रणाम करते और फिर खड़े हो हाथ जोड़ कर स्तुति करते हैं)

कवित्त।

जाहि भजै सेस श्री महेस त्योंगनेस वेस-
सकल सुरेस श्री नरेस मन लायकै॥
जाहि भजैं जोगी जती तापसी विरागीरागी-
सकल सँजोगी भोगी चोप चित्त चायके।
जाहि भजैं रमा उमारामा श्री तिलोत्तमा हू-
कोविद सुकवि कोटि कविता बनायकै॥
वागीश्वरी भारती भवानी देवयानी मातु-
देवी सरस्वती सोहैं आसन पै आयकै।

(और भी)

गोरी देह वारी जरतारी सेतसारी धारी-
भूखन सँवारी भारी हंस की सवारी है॥
माथे मोर मुकुट किरीट कान कुंडल द्वै-
सोहै इन्दु विंदु भाल कंजमाल धारी है॥
पुस्तक कमल बीन फाटिक करन लीन्हे-
चारिहं भुजा तेंदुष्ट दानव सँघारी है॥