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नाट्यसम्भव।

भरतमुनि ने ऐसी अपूर्व विद्या कहां ने पाई?

दमनक। (मन में) वाह! अच्छे प्रपञ्ची से काम पड़ा। बकते २ मिर घूमने लगा। न जाने कब पन्ना छूटैगा। (हंसकर) अरे! फिर वही बात! जो यह हमारे मन की बात जान कर कोई शाप वाप दे वैठे तब? अच्छा अय कभी ऐसा न सोचेंगे। (प्रगट ) सरस्वती माई ने दी है। बस इसीसे आपकी सब अलाय बलाय उड़ जायगी।

इन्द्र । ठीक है। भला तू अपनी बनाई फोई कवितातोपद?

दमनक। जो आसा (उछल कर बगल बजाता हुआ) किन्तु वाह २ किये जाइयेगा नहीं तो रूपक न बंधेगा। सुनिये तो सही,कैसा कठिन काम किया है। हूं उसे (सुर साध कर गाता है)।

सांझ सवेरे उठके हलुआ पूरी खाओ।
दूध मलाई रवड़ी से भुजडंड मुटाओ॥
पान चाभ सानीसा दोनों गाल फुलाओ।
पहलवान बन बेगि असुरगन मारि गिराओ॥
थाही विधिसों अभी जाय प्यारी को लाओ।
सुख दुख सबै समान होय मङ्गल तुम गाओ।

इन्द्र। (हंसकर) अहा हा हा ! क्या कहना है बहुतही अच्छी कविता है। तूने तो रीति,नीति,उपदेश आदि के मसाले डाल कर साहित्य और सङ्गीत की खिचड़ी