से कुछ चुने हुए दैत्यों को लेकर धड़धड़ाते हुए वर्ग में घुस गए और जब-तक देवतागण सामना करने के लिये तैयार हो,इन्द्राणी को हरण करके अपने शिविर में में लौट आए। ऐसा करने से एक तो इन्द्र से उसकी पहिली करनी का भरपूर बदला लेलिया गया और दूसरे यह समझा गया कि जब स्त्री के हरे जाने से वह बिल्कुल वेकाल होजायगा और उसके अकर्मण्य होने से देवताओं के भी हाथ पैर हीले होजायंगे तब स्वर्ग कालेलेना हमारे लिए बहुतही सहज होगा किन्तु नमुचि के लौटने में इतनी देर क्यों होरही है?
(द्वारपाल आता है)
द्वारपाल । (आगे बढ़ और बलि को प्रणाम करके) स्वामी की जय होय। दैत्येश्वर! स्वर्ग की टोह लेने के लिए जो नमुचि भेजा गया था, वह वहां का ननाचार ले आया है और द्वार पर ठहरा हुआ स्वामी के दर्शनों की उतावली जतलाता है।
बलि। ( गले से रवनय हार उतार कर द्वारपाल को देता। हुआ) अरे, वज्रदंष्ट्र इस सुरुम्बाद के देने का यह तुझे पारितोषिक दिया जाता है।
वज्रदंष्ट्र। (हार लेकर गले में पहिरता हुआ) आपकी जय होय। भगवान महाकालेश्वर आपको देताओं पर विजय दें।