बलि। वजदंष्ट्र! तू अभी नमुचि को हमारे पार भेष,क्योंकि उससे मिलने के लिए हम अत्यन्त उत्कंठित हो रहे हैं।
वज्रदंष्ट्र। जो आज्ञा (गया)
नमुचि। (आता हुआ) अहा! हमारे स्वामी का मुख इस समय चिन्तायुक्त होने पर भी कैसा प्रसन्न देख पड़ता है और उस समय तो इस प्रसन्नता की सीमाही न रहेगी, जब हम स्वर्ग विजय कर लेने के सम्बन्ध में सुसमाचार सुनावेंगे (आगे बढ़कर) राजाधिराज दैत्येश्वर की जय होय।
बलि। (हर्ष से ) अहा! नमुचि! तुम भले आए। इस समय हम तुम्हारीही बात सोच रहे थे। (हंसकर ) तुमने स्वर्ग की टोह लगा लाने में इतनी देर क्यों लगाई ? क्या किसी अप्सरा के जंजाल में तो नहीं फंस गए रहे।
नमुचि। प्रभो! आपका दास ( मैं ) स्वामी के कार्य में अवहेला करने या किसी दूसरे जंजाल में भरमने वाला नहीं है। हम तो मायाविद्या से अपने को इस भांति छिपा कर स्वर्ग में गए थे कि हमारे वहां जाने की गन्ध तक किसी देवता ने न पाई होगी। किन्तु देर होने का कारण यह है कि जबतक हमने अली भांति देवताओं का हाल जान न लिया, लौटने