हमारा पर्दा अाज तक पुरुषयुग यदि हिंसा का, दूसरों के अधिकारों का छीनने का, और अशान्ति का युग रहा है तो मैं भविष्य के उस स्त्री युग की कल्पना करती हूँ जिसमें अहिंसा का साम्राज्य होगा, शान्ति का समय होगा और हर एक व्यक्ति, क्या स्त्री और क्या पुरुष, अपने मनुष्योचित अधिकारों को प्राप्त कर सकेगा । स्त्री-पुरुषों की सामाजिक असमानता का और समाज में से आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक, धार्मिक और राजकीय गुलामी का अन्त होगा । मानव समाज की नींव शोषण की अपेक्षा सहयोग की बुनियाद पर खड़ी होगी । आज हिंसा का प्राबल्य है। शक्ति शालियों की हिंसा के सम्मुख जगत का विनाश दिखाई देता है । इस समय अहिंसा पर विश्वास रखना कठिन है । तथापि हमें मनुष्य के उच्च गुणों पर विश्वास रखना होगा, जीवन आशामय बनाना होगा और अपने भविष्य उजवल के विश्वास से काम करना होगा । अाज संसार में मृत्यु की शक्ति का सम्मान है । हमें जीवन की शक्तियों का आदर बढ़ाना होगा। स्त्रियों का प्रश्न उत्पन्न होते ही स्त्रियों का समाज में क्या स्थान है और पुरुषों की तुलना में उनकी स्थिति क्या है यह सवाल प्रथमतः उत्पन्न हो जाता है । लेकिन इस विषय में बहुत मतभेद है । निसर्गतः क्या स्थिति है, इस सम्बन्ध में निश्चित कहना कठिन है । कुछ यह विचार रखते हैं कि स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष श्रेष्ठ हैं तो काई ऐसा विचार रखनेवाले भी मिल जाते हैं कि नैसर्गिक शिव शक्तियां पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में श्रेष्ठ हैं । पर स्त्री पुरुष की समानता में तो किसी का अविश्वास न होना चाहिये । मनुष्य समाज में दोनों समान हैं । समाज के लिये दोनों आवश्यक हैं और दोनों के यथोचित कर्तव्य पालन पर समाज की सुख शान्ति और प्रगति निर्भर है । स्त्री पुरुषों की समानता. को मान लेन के पश्चात अनेक बातें हल हो जाती हैं । समाज में जो अधिकार पुरुषों को
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