पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१०६

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नारी समस्या परदा-निवारण की बात कहते ही हमारी संस्कृति से उसका क्या सम्बन्ध है, प्राचीन काल में परदा हमारे समाज में कबसे आया आदि प्रश्न उठते है। खोज की बात दूसरी है लेकिन सुधार की दृष्टि से हमारे सामने सीधा सवाल है कि आज परदा निवारण आवश्यक है या नहीं ? और उसका सीधा उत्तर यही है कि वर्तमान समय में परदा निवारण की शीघ्रातिशीघ्र आवश्यकता है । मारवाड़ी समाज के सुधारक्षेत्र में परदा-निवारण का प्रश्न २०-२५ वर्ष पुराना है । आज परदा-निवारण का वातावरण समाज में तैयार हो गया है। परदे के विरोधी आम सभाओंमें कम दिखाई देते हैं तथापि इस प्रश्न ने मारवाड़ी समाज की विचार धारा को जितनी उत्तेजना देनी चाहिए थी उतनी नहीं दी । मारवाड़ी समाज में परदा केवल बूंघट के रूप में रह गया है । हमारे यहाँ परदे का वह भीषण स्वरूप नहीं है जो मुसलमान समाज में या हिंदुस्थान के उत्तरी भागों के कुछ समाजों में हैं । मारवाड़ी स्त्रियाँ बाहर घूम सकती हैं । रास्ते में गीत भी गा सकती है। उनके लिए केवल अपने मुँह पर चूँघट डालना आवश्यक समझा जाता है । इस प्रकार के यूँघट का उद्देश्य क्या है ? उससे लाभ क्या हैं ? व्यवहार में वह किस प्रकार अमल में लाया जाता है आदि बातों पर यदि हम थोड़ासा विचार करें तो हमारी यह बूंघट की प्रथा न केवल अनुपयोगी, लाभहीन अपितु हास्यास्पद मालूम होगी । स्त्रियाँ पीहर में परदा नहीं करतीं, ससुराल में ही करती हैं। वे घरवालों से परदा करती हैं बाहरवालों और अपरिचितों से नहीं, यह बात मूर्खतापूर्ण प्रतीत होती है । स्त्रियाँ नौकरों से बराबर बोलती हैं, हँसती हैं.. और परदा भी नहीं करतीं । लेकिन पति के दोस्त, जेठ, स्वसुर या कहीं कहीं अपनी सास तक से परदा करती हैं । यदि स्त्रियों को अपने घरवालों से कोई बात पूछनी पड़ती है तो वहाँ भी नौकर टेलीफोन का काम करता है और यदि नौकर न हो तो भीत से बात कर उसकी प्रतिध्वनि से ही वे अपना काम चला लेती हैं । जिन बड़े बूढ़े और गुरुजनों की संगति का लाभ अधिकाधिक उठाना चाहिए उनके सामने तक बहुओं का आना मना है । परंतु जिन लोगों से यथाशक्य दूर रहना चाहिये उनसे बात करने में आपत्ति नहीं समझी जातीं । इसका परिणाम यह होता है कि हम स्त्रियाँ यही समझती हैं कि छोटे लोगों से ही बोलने का समाज ने हमें अधिकार दिया है । मैंने एक जगह देखा है कि एक सास बिसाती से कुछ खरीद रही थी और वह वहाँ आने में हिचक रही थी तो सासने कहा, "बीननी ! आजा । श्रोतो बिसायती है। तन · चाहे जिकी चीच पसंद करले ।" ।