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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११६

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नारी समस्या १०० के पास बैठा तो काट अवश्य लेगा । हम देखते हैं, हरी घास में जो कीड़े रहते हैं वे हरे हो जाते हैं, पीली में पीले, सफेद में सफेद और काली में काले । नीतिकार का कथन है कि साप से १० हाथ दूर रहना चाहिये, पागल कुत्ते से ५० हाथ और कुसंगति से लाख हाथ । संगति का प्रभाव हम प्रत्यक्ष देखते हैं । इसी लिये लाख प्रयत्न करके बच्चे को कुसंगति से बचाना चाहते हैं । फिर भी गर्भस्थित बच्चे पर मातापिता का कितना असर होता है इस पर मातापिता और बड़ेबुढ़े बहुत ही कम ध्यान देते हैं। बच्चा दिनरात माता पिता की छाँह में रहता है पर वे कभी यह नहीं सोचते कि हम में भी कोई दोष है जिसे बच्चा सीख लेगा । यदि पिता काई नशीली वस्तु खाता है, बीड़ी तमाखू पीता है तो बच्चा भी उसकी नकल करता है । माताएँ तो संसार में सब से बड़ी गुरु मानी जाती हैं । वे बच्चे का जो कुछ सिखाती हैं उसका असर जीवन भर रहता है । वे बच्चे का डरना सिखाती हैं-"हाऊ आया, बिल्ली आई म्याऊ म्याऊ, सिपाही आया ले जायगा” सारी बातें बच्चे पर बहुत प्रभाव डालती हैं । वह डरना और झूठ बोलना साथ ही साथ सीख लेता है । बच्चे का उत्पन्न करना सरल है, पर उन्हें योग्य बनाना सरल नहीं है। बच्चों का पालन बड़ी सावधानी के साथ प्रत्येक माता को सीखना चाहिये । हमारे पास उत्तम से उत्तम कपड़े और सीने पिरोने का सुन्दर से सुन्दर सामान पड़ा है। खाना बनाने के लिये उत्तम से उत्तम सामग्री है किन्तु 'बिना सीखे क्या हम कतर ब्यौत कर सकती हैं ? 'अच्छा कपड़ा सीना, कसीदा काढ़ना, बुनना चरखा चलाना आदि हम महीनों शिक्षकों से सीखती हैं तब कहीं हमारा उस पर हाथ बैठता है । यदि हमारी कोई चीज़ अच्छी नहीं बनती है और दूसरे की अच्छी होती है तो हम उसके पास जाकर उसकी सी चीज़ बनाने की कोशिश करती हैं। किन्तु शिशुपालन के समान महत्व-पूर्ण काम हम योग्यतापूर्वक सीखने का प्रयत्न नहीं करतीं । वह काम एक मशीन की तरह चलता रहता है । खाना बनाने के लिये हम उत्तम उत्तम पाकविज्ञान की, पाकशास्त्र की पुस्तकें मँगाती हैं । सिलाई सीखने के लिये, एम्ब्रायडरी, हस्तकार्य की अच्छी पुस्तकें मँगाती हैं; पर उत्तम रीति से सन्तान पालने की ओर कितनी स्त्रियों का ध्यान जाता है । और कितनी इस विषय की पुस्तकें मँगाकर पढ़ती हैं ? किन्हीं गर्भिगी बहिनों से जब मैं यह कहती है कि 'आप को प्रसन्नचित्त रहना