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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११७

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१०१ सन्तान पर माता का प्रभाव 1 चाहिये, क्षोभ न करना चाहिये, न मोह, दुख, सन्ताप में ही पड़ना चाहिये और न भयभीत होना चाहिये, मिट्टी कोयले न खाना चाहिये इससे बच्चे पर बहुत ही भयंकर प्रभाव पड़ता है, तब वे कहती हैं, "यह तो गृहस्थी है । यहाँ सभी प्रकार के मनुष्यों से काम पड़ता है । सभी प्रकार के दुख-सुख सहने पड़ते हैं। धक्के मक्के खाने होते हैं । उतार चढ़ाव देखने पड़ते हैं। भलाई बुराई में से गुजरना होता है । हमेशा प्रसन्न रहना, सभी प्रकार के दुःखों से अलग रहना इस दुरंगी दुनियां में कैसे सम्भव हो सकता है।" यह कहना एक हद तक ठीक है । जिस तरह और कामों में होशियार होने का प्रयत्न करती हैं उसी तरह गर्भावस्था में प्रसन्न रहने का प्रयत्न करें तो कुछ कठिन नहीं है । जब किसी के बेटे का विवाह होता है और महीनों तक उसका कार्य चलता रहता है तो उस अवधि में माता कितनी, शान्त और प्रसन्न रहती है । वह साधारण स्त्रियों की बातें भी सुनकर हँस देती है । सभी को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करती है । यहाँ तक कि जब नाइन; धोबिन, दाइन आदि भी अपने अपने नेग के लिये झगड़ने लगती हैं तो वह यह सोचकर अप्रसन्न नहीं होती है कि भगवान ने आज ऐसा शुभ दिन दिखाया। इस अवसर पर प्रसन्न ही रहना ठीक है । वह रूठी हुई स्त्रियों को मनाती है; उनका मान रखती है और प्रशंसा करती है । घर में किसी ने कुछ नुकसान कर दिया तो धीरे से समझाने का प्रयत्न करती है । कभी कभी तो देखी अनदेखी कर जाती है । वह सब के खाने-पीने और सुख सुविधा की फिकर रखती है । इतने पर भी जब लोग अनेक प्रकार की टीका टिप्पणी करते हैं, भला बुरा कहते हैं तब माता अपने बेटे का विवाह आनन्दपूर्वक निपट जाये, इस दृष्टि से किसी की बात का बुरा नहीं मानती; वरन् सब को प्रसन्न रखती है । इसी तरह यदि किसी माता का लम्बी प्रतीक्षा के बाद बच्चा हुआ हो तो उसे भी उतनी ही प्रसन्नता होती है । छोटी-छाटी स्त्रिया भी बालक पर ममता दिखाती हुई माँ को उलाहना देने लगती हैं, "देख बच्चे का मुँह नहीं धोया, वह भूखा होगा, उस पर मक्खी बैठती है, अब इस तरह से अलल बछेरे की तरह घूमना छोड़ दे, बच्चे को सँभाल आदि । यह बातें माता का फूल की छड़ी सी लगती हैं । इसी प्रकार बच्चे के पेट में रहने पर माता का खुश होना चाहिये । बच्चे की भलाई के लिये सभी को खुश सम्बते हुए स्वयं को भी प्रसन्न रम्बना चाहिये । घर की बड़ीबूढ़ी स्त्रिया और पुरुषों का भी गर्भिणी की ओर ध्यान देते रहना बहुत आवश्यक है । महाराष्ट्रीय जनों में तो मासिक धर्म होने पर उत्सव किये जाते हैं । .