पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११८

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नारी समस्या - - - भेटें देकर गा बजाकर प्रसन्न किया जाता है । गर्भवती का भी प्रसन्न रखने के लिये उत्सव जिन्हें मराठी में "ढाबाले" कहते हैं, किये जाते हैं। 'ढाबालों' में भी गर्भिणी की इच्छाओं की पूर्ति की ओर संकेत रहता है । महाराष्ट्र में आज भी यह रिवाज़ विधिवत् पाला जाता है। मारवाड़ी गीतों में भी गर्भिणी की इच्छा पूर्ति और प्रसन्न रखने का संकेत है । सातवा महीना हमारे यहाँ भी पूजा जाता है । यह भी गर्भिणी को खुश रखने के लिये ही है । पर आज यह रिवाज नाममात्र का ही रह गया है। इसके वास्तविक मूल्य की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। बच्चा पैदा होने पर भी अनेक प्रकार के उत्सव मनाये जाते हैं, काफ़ी पैसा खची जाता है पर जच्चा और बच्चे की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया जाता । इसका कारण यह नहीं है कि स्त्रिया जान बूझकर ऐसा करती हैं या वे बड़े भारी खर्च या मेहनत से बचना चाहती हैं । नहीं, सवाल उनके अज्ञान का है। उन्हें इन बातों की जानकारी नहीं है । इसीलिये उनसे न होने योग्य अनेक कार्य हो जाते हैं। इसका परिणाम घरवालों का, जच्चा बच्चा और समाज का भी भोगना पड़ता है । यदि घर की बुजुर्ग स्त्रियों से इस बारे में कुछ कहा भी जाता है तो वे कह देती हैं “क्या हमारे बच्चा नहीं हुआ है ? सब इसी तरह से हो गये । हमें क्या सिखाते हो ।” पर आज की स्त्रियों और ५० साल पहिले की स्त्रियों में कितना . अन्तर है ? वे इसे नहीं देखेंगी । आज की अधिकतर स्त्रिया प्रसूति के बाद बीमार होकर निकलती हैं । और पहिले की स्त्रिया अधिकतर प्रसूति से हृष्ट पुष्ट और स्वस्थ निकलती थीं । इसका कारण उनके शरीर की मजबृती था । बच्चा होने के दिन तक काम में लगी रहती थीं । बच्चा होने के बाद कुछ दिन उन्हें जो आराम मिल जाता था उसीसे उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी अच्छा असर होता था। और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उनकी -शक्ति बहुत अच्छी रहती थी । परिश्रमी स्त्रियों के लिये यह स्वाभाविक भी है। इसीलिये अव्यवस्थित रहने पर भी उन पर कोई बीमारी असर नहीं डाल सकती थी । आज की स्त्रिया वैसी नहीं रहीं । वे नाजुक और स्वच्छताप्रिय हो चली हैं । उन्हें भी यह ध्यान रखना चाहिये कि गर्भावस्था तक में कामों में लगी रहें। जिससे उनका चित्त भी प्रसन्न रहे और स्वास्थ्य भी अच्छा रहे । गर्भिणी का प्रतिदिन ३-४ मील दिन में दो बार टहलना अवश्य चाहिये । बाहर खुली हवा में जा सके तो बहुत ही अच्छा, नहीं तो घर में छत इत्यादि खुली जगह पर टहलना लाभकर है । कोई काई बहिन यह कहकर अपना दिल छोटा किया करती हैं कि हम तो पाचन-