पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२२

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नारी समस्या १०६ इसकी बहुत कुछ जिम्मेवारी पुरुषों पर है तो भी उस पाप का फल तो स्त्रियों को ही भोगना पड़ रहा है । जो पुरुष सबेरे से शाम तक स्वच्छंद सड़कों, होटलों, पार्को और सिनेमा हाउसों में खुले मुँह घूम सकता है वही अपनी पत्नी को अपने भाई, पिता या मित्र के सामने खुले मुँह नहीं सहन कर पाता । न्याय की कैसी विडम्बना है ! परदा हमारे समाज में तो बहुत बेढंगे तौर पर होता है । यों तो देश के अधिक भाग में किसी न किसी रूप में परदा प्रचलित है । अनेक स्थानों पर स्त्रिया बाहर निकलते समय अपनी सवारियों तक को परदे से घेर लेती है और अनेक स्थानों पर तो स्त्रिया स्त्रियों से ही परदा करती हैं। पीहर में परदा नहीं करती किन्तु ससुराल में परदा करती हैं और वह भी कुटम्बियों से तथा परिचित भद्र पुरुषों से । अपरिचितों, नौकर-चाकरों फेरीवालों, ज्योतिषियों और बिना पगड़ी वालों से नहीं करती । इस परदे ने हमारी पिछली समस्त कीर्ति पर गाढ़ी स्याही पात दी है। जिन्हें देखने का अांखें हैं और सोचने का मस्तिष्क, वे जानते हैं कि यह परदा हमारे मुख पर ही नहीं सारे कार्यों पर पड़ गया है । हमारी तीसरी समस्या है वेशभूषा की। हमारा पुराना वेप किन्हीं विशेष परिस्थितियों में, किसी विशेष समय में चुना गया होगा। आज उसकी उपयोगिता नष्ट हो चुकी है। लम्बे-लम्बे भारी भरकम घाघरे, शरीर को अधखुला रखनेवाली अगिया, कलाई से लेकर काहनी तक जड़ी हुई चूड़िया पतले और खर्चीले ओढ़ने, बालों पर कसा हुआ बोर; शरीर का बोझिल बना देनेवाले गहने न केवल अपव्यय की दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य और सौन्दर्य के ख्याल से भी हानिकारक हैं । वेष ऐसा होना चाहिये जो कम खर्चीला हो, जिसे धारण करने में सहूलियत हो, शरीर में फुर्ती रहे, स्वास्थ्य सुन्दरता और नारी मयादा की रक्षा में सहायक हो। किन्तु हमारी वर्तमान वेशभूषा उपर्युक्त किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। सुधार या उपहास की भावना से हमारे पहिनाव के जो चित्र वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में छपते आ रहे हैं उनसे हमारा कम उपहास नहीं हुआ किन्तु फिर भी अभी हमारे कानों पर जूं तक नहीं रेंगी । बाल विवाह, वृद्ध विवाह और अनमेल विवाह वैसे तो सभी प्रान्तों और जातियों में प्रचलित हैं किन्तु हमारे यहाँ इनका भीषणतम रूप देखने में आता है । इनमें भी बाल विवाह तो बहुत अधिक प्रचलित है । वर्षों के आन्दोलनों, मेजतोड़ व्याख्यानों और शारदा एक्ट के पास हो जाने के बावजूद भी इस दिशा में काई उरलेखनीय प्रगति नहीं हो पाई। अभी तक अधिकांश माता-पिता 'गौरी' शहिणी' और सब से निकृष्ट -