पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२३

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१०७ अतीत और वर्तमान 'कन्या' के दान से पुण्य कमाकर वैतरणी पार करने का प्रबन्ध करते ही जाते हैं । मुझे ऐसे माता-पिताओं के उदाहरण मालूम है जो पुत्र या पुत्री के विवाह के दो चार वर्ष पूर्व से ही उनकी उम्न बढ़ा बढ़ाकर बताना प्रारम्भ कर देते हैं जिससे उन पर शारदा कानून के अनुसार मुकेदमा चलाने का किसी को साहस ही न हो । न जाने ये धर्माचार्य माता-पिता कब अबोध बाल विधवाओं के आसुओं से तर्पण पाने का लोभ छोड़ सकेंगे । दहेज के कारण समाज की सुन्दर व्यवस्था में बहुत अधिक बुराई आ गई है । समाज का कार्य है निष्पक्ष व्यवस्था करना और निष्पक्ष न्याय करना। किन्तु समाज तो 'जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात कर रहा है । आखिर यह दहेज प्रथा है क्यों ? इसमें खुल्लमखुल्ला लड़की का अपमान और उसका छोटापन महसूस किया जाता है । गुजरातियों में यह प्रथा आज नहीं है। कई वर्गों ने यह नियम बनाया है कि जो लड़का सगाई के समय लड़की के नाम से एक निश्चित रकम बैंक में जमा करा देगा वही सगाई कर सकता है । इस प्रकार का बन्धन तो कुछ समझ में आ सकता है । वास्तव में गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पहिले वरवधू के पास थोड़ीसी रकम होना अत्यावश्यक है । प्रेम-विवाह की बात दूसरी है । इसकी जवाबदारी समाज पर नहीं । किन्तु समाज के नियमानुसार शादी के समय लड़के में इतनी योग्यता चाहिये कि वह अपनी गृहस्थी का भरण-पोषण कर सके। दहेज का बन्धन लड़की के पिता पर होना समाज की बहुत बड़ी कमजोरी है । इस दहेज का कानूनन बन्द कर देना चाहिये और कानून से साम्पत्तिक अधिकार स्त्री को जरूर दिया जाना चाहिये । दहेज तो इच्छा पर निर्भर है । वह तो भेंट के रूप में लड़कों का, बहू को, बहिन को तथा भित्र को दिया जा सकता है किन्तु रूढ़ि बनाकर उसका पोषण करना समाज के एक अंग का बहुत कमजोर कर देना और अपमानित करना है। दहेज के कारण लड़की के पैदा होने पर सारे घर में शोक छा जाता है और अपशब्दों द्वारा उसका अपमान भी किया जाता है । जब स्त्रियों को भी साम्पत्तिक अधिकार होगा तो कोई उन्हें छोटा न समझेगा और पैदा होने पर न कोई अपमान ही करेगा । साम्पत्तिक अधिकार पाकर स्त्रिया बिगड़ जायँगी या उनके स्वाभाविक गुण नष्ट हो जायँगे यह सोचना भी पाप है । आर्थिक अधिकार पाकर वे अपने में कुछ शक्ति का अनुभव करेंगी, उनका स्वाभिमान, और तेज बढ़ेगा । फिर वे अपने गुण, दया, ममता, स्नेह, सेवा, त्याग और बलिदान का प्रयोग दबकर नहीं खुले दिल से कर सकेंगी और उसी में स्त्रियों की वास्तविक इज्जत होगी। समाज में सुखशांति