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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२४

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नारी समस्या १८८ बढ़ेगी। आज तो ऐसा दिखाई देता है कि ये सब ममता, दया, सेवा, त्याग, बलिदान अादि स्त्रियों से गर्दन दबाकर जबर्दस्ती से बन्धन से कराये जाते हैं । 'जिमि स्वतन्त्र हुइ बिगरहि नारी' यह कथन स्त्रियों का घोर अपमान है । सदियों के इस अपमान से वे अपना सारा आत्माभिमान भूलकर पशु तथा शूद्रों की श्रेणी में आ गई हैं। किन्तु आज नारी ने करवट बदली है । आँखें मलकर दुनिया देख रही हैं । वह फिर वीर माता, वीर पत्नी, वोर पुत्री, वीर भगिनी तथा प्रकाशमान भारतीय नारी होना चाहती हैं । अब वह अपना और पतन सहन नहीं कर सकती । महिलाओं की वर्तमान परवशता को देखते हुए इतना निश्चित ही कहना पड़ेगा कि महिलाओं को किसी न किसी रूप में आर्थिक अधिकार मिलना चाहिये किन्तु वह किस रूप में मिलना चाहिये यह भी विचारणीय है । कानून बनाया जाता है समाज की सुख शान्ति और धर्म रक्षा के लिये । मेरे विचार से स्त्री और पुरुष दोनों ही को कुछ बन्धनयुक्त आर्थिक अधिकार होने चाहिये। बहुत से पुरुष भी ऐसे हैं जो पैसे का दुरुपयोग करते हैं । उसी प्रकार सम्भव है कुछ स्त्रियों में भी यह बात आ जाये । इस लिये जहाँ तक हा स्थायी जायदाद की आमदनी पर ही. यह बन्धन हा स्वयं की कमाई के लिये वे स्वतन्त्र रहें । आज भी हिन्दू स्त्रियों के कुछ आर्थिक अधिकार है किन्तु वे स्टेट को बेच नहीं सकती । सम्भव है पुरुषों पर यह कानून लगाया जाय तो वे एतराज करें और व्यक्तिगत व्यापार की दृष्टि से भी उन्हें कुछ आपत्ति हो किन्तु घर की सुख शान्ति के लिये अचल सम्पत्ति को बेचने का अधिकार तब तकन होना चाहिये जब तक उस जायदाद से संबंधित व्यक्तियों को भी अनुमति न ले ली जाये। सच तो यह है कि हमारे सामाजिक सिद्धान्त आज की दृष्टि से उपयोगी नहीं सिद्ध हो रहे हैं । स्त्रियों की दशा तो उनसे दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है । इसी लिये आज की शिक्षित नारी सामाजिक बन्धनों को तोड़ फेंकना चाहती है । विद्रोह उसकी नस-नस में समा गया है। इस विद्रोह का स्वागत होना चाहिये । पर साथ ही हम यह भी ध्यान रखें कि आवेश में निर्माण करने की शक्ति नहीं होती उसके लिये शान्त मस्तिष्क की आवश्यकता होती है । अभी हम अपना पथ ठीक ठीक निधारित नहीं कर पाये हैं और वह तब तक निश्चित हो भी नहीं सकता जब तक हमारी बहन शिक्षित न हों। आज नारीसमाज की सब से बड़ी आवश्यकता है शिक्षा । इस एक समस्या का हल सारी समस्याओं का हल है ।