पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२७

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१११ हमारी विवाह-प्रथा घरों में कहीं-कहीं कन्या और वर की स्वीकृति ली जाती है। यह भी स्वयंवर का, आंशिक रूप ही है किन्तु इसमें स्वभाव और गुणों का परिचय नहीं हो पाता । फिर भी वर कन्या का काफी समाधान रहता है और वे विबाह के लिये अपने को उत्तरदायी अनुभव करते हैं । किन्तु ऐसे विवाह होते कितने हैं ? और इनमें भो दहेज प्रथा तो गहरे पाव गड़ाये हुए हैं । प्राचीन पाँच उत्तम और तीन अधम इन आठ प्रकार के विवाहों में आज किस प्रकार की विवाह प्रथा चल रही है ? बेंटी दामाद का वस्त्राभूषण देकर बिदा करना ब्राह्म प्रणाली है ? दामाद विद्वान और सुशील चाहिये । किसी अंश में यह भी मान लिया जाता है। परन्तु मगनी होने के दिन से ही वस्त्राभूषण, रुपये, मेवे, फल, मिठाई आदि देना शुरू हो जाता है और विवाह के दिन सेना के रूप में बड़ी सजधज के साथ बारात ले जाई जाती है । इस बारात के प्रत्येक सिपाही के अलग- अलग नखरे रहते हैं । अलग-अलग माँगें रहती हैं। दीन हीन वेष में हाथ जोड़े बेटी के बाप का प्रत्येक की मनुहार करनी पड़ती है । यदि तनिक भी गलती हो गई तो बारात के सिपाही पैंतरे बदलने लगते हैं और दल-बल सहित जूझने को तैयार हो जाते हैं । यह देखकर बेटी का बाप और भी घबड़ा जाता है। कहीं-कहीं बारातियों की भी कपड़े, बर्तन, रुपयों आदि से मुठ्ठी गरम करनी पड़ती है । दामाद के माँ-बाप भाई-बहिन नाना- मामा जीजा-फूफा ताऊ-चाचा और मित्रों आदि की उनके पद के अनुसार अलग-अलग भेंट रहती ही है । किसी को नजर पसन्द न आई तो मुँह बनाकर बेटी के बाप का चैलेंज देने के लिये तैयार हो जाता है । यदि दामाद के पिता के नजराने में कमी रह गई तो फिर खासा युद्ध छिड़ गया; जैसा कि राक्षस विवाह में हुआ करता था । अब कहिये इस प्रकार के विवाहों को क्या नाम दिया जाये ? प्राचीन ब्राह्म और राक्षस के मिश्रण से आज के विवाह की काया बनी है। इसी प्रकार बाल विवाह, अनमेल विवाह, वर वधू के बिना पारस्परिक परिचय के विवाह, बहुविवाह आदि अनेक रूपों में आज की विवाह-पद्धति विकृत हो गई हैं । ईश्वर की कृपा समझिये जो बाल-विवाह अधिक दिन नहीं चल सका । अन्यथा इस समाज का मानव भी कीड़े-मकोड़े की तरह ऋतु ऋतु के अनुसार पैदा होने वाला और मरनेवाला बन जाता अथवा दो-दो तीन-तीन फीट लम्बी और आठ-दस साल की आयु तो शायद निकट भविष्य में दिखाई देती । बाल-विवाह के दुष्परिणाम को आज भी बहुत से लोग नहीं जान पाये और वे सनातनी होकर भी सनातन को नहीं मानते। ईश्वर की कृपा है कि यह समस्या एक