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नारी समस्या
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स्त्री नरक का द्वार है। नारी मोक्ष-मार्ग में बाधक है इत्यादि। पुरुष स्त्री के मोक्ष में बाधक नहीं है उलटे साधक है। नरक का द्वार न होकर स्वर्ग का द्वार है किंतु स्त्री उसकी अधोगति का कारण है? खूब न्याय रहा। जिस प्रकार स्त्री पुरुष के प्रति प्रेम, श्रद्धा और भक्ति रखती है उसी प्रकार पुरुष भी यदि स्त्री के प्रति श्रद्धा रखता तो किसी हालत में पुरुष का पतन नहीं होता। दूसरे को पतित बनाने वाला और वह भी व्यक्ति को नहीं, पूरी जाति को---स्वयं भी निर्दोष नहीं हो सकता। इसमें पुरुषों की कमजोरी असहनशीलता और उच्छंखलता छिपी हुई है। स्त्रियों को नरक का द्वार, मोक्ष का बाधक आदि इसीलिये तो लिखा गया है कि पुरुषों को स्त्री के प्रति घृणा हो जाये उसका मन स्त्री को देखकर चंचल न हो उठे। अपनी स्वार्थ-सिद्धि चाहे मोक्ष के समान सात्विक ही क्यों न हो उसके लिये दूसरों को दोषी ठहराना कहाँ का न्याय है? यदि पुरुष के लिये भी धर्म-ग्रन्थों में एक पत्नीव्रत का कड़ा नियम होता; उसके अपमान में नर्क डर होता तो कोई कारण नहीं था जो स्त्री को देखकर पुरुष संयमी न रह सकता। अपनी ही स्त्री से प्रेम श्रद्धा और भक्ति करता तो कैसे स्त्री नरक-द्वार और मोक्ष में बाधक हो सकती? पुरुषों को देखकर जब स्त्री संयम से रह सकी तब स्त्री बुरी तरह निन्दा की पात्र बन गयी। स्त्री का दर्जा पुरुष के समान मानने वाले जानते हैं कि धर्म-ग्रंथों में पुरुषों के प्रति पक्षपात हुआ है। पुरुष पर विश्वास करके या असुविधा के कारण स्त्रियों ने धर्म-ग्रंथ नीति-ग्रंथ, नहीं लिखे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि वे कभी लिखेंगी ही नहीं।

कुछ वर्ष हुये महात्मा गाँधी ने साहित्य सम्मेलन की परीक्षाओं के पाठ्यक्रम से 'शिवाबावनी' निकालने पर इसलिये ज़ोर दिया है कि उससे मुसलमानों का जी दुखता है, किंतु धर्म-ग्रंथों से ऐसे भाग न जाने कब निकलेंगे जिनसे स्त्रियों का जी दुखता है।

आज 'डायवोर्स' की आवाज़ बुलन्द है। स्त्री-पुरुषों के हृदय में कितनी अशांति है? धर्म ग्रंथ और नीति-ग्रंथ इसीलिये तो बनाये जाते हैं कि समाज व्यवस्थित रूप से चले और उससे सुख-शांति रहे किंतु ऐसा नहीं हो रहा है। धर्म और नीति ग्रन्थों पर डींग मारना व्यर्थ है। स्त्रियों का स्वभाव ही से निर्बल कहा जाता है। स्त्रियों की निर्बलता का कारण परिस्थिति है न कि प्रकृति। यदि कोई मनुष्य हजारों वर्ष तक नहीं कुछ सदियों तक ही जंगली पशुओं के साथ रहे तो उसकी शारीरिक दशा भी उन्हीं पशुओं जैसी होने लगेगी। तब स्त्रियाँ यदि हज़ारों वर्षों से घर के अन्दर बन्द रहती आयें और उनका शरीर निर्बल बन जाये तो उसमें ईश्वर का क्या दोष? यदि पुरुष भी इसी तरह घर में रहकर सन्तान-