सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी समस्या २६ हमारे यहाँ लड़कियों की पढ़ाई लिखाई भी प्रायः व्यर्थ समझी जाती है । लड़की दूसरे घर का धन है । उस पर नाहक खर्च कौन करे ? लड़की का काम रहता है माता के गृह कार्य में सहायता देना, छोटे भाइयों को खिलाना, उनके कपड़े धोना और समय- समय पर उनके तमाचे खाना आदि । पिता की सम्पत्ति में लड़की का कुछ भी अधिकार नहीं रहता । विवाह के समय पिता जो कुछ खर्च करता है वह लड़की के किसी काम का नहीं । बड़े-बड़े भोज तो घर वाले अपनी बड़ाई के लिये करते हैं क्योंकि वे स्वयं भी लोगों के यहां विवाह-शादियों में भोजन करने आते हैं । बदले में उन्हें भी जिमाना पड़ता है । यह तो व्यवहार ठहरा । जो दान दहेज़ में दिया जाता है उस पर लड़के का ही अधिकार रहता है । कभी लड़की के पिता द्वारा खासा दान-दहेज़ न मिला तो लड़की को हमेशा सास ससुर के तानों का शिकार बनना पड़ता है । अनेकों बधुओं का तो जीवन इन तानों के कारण यहाँ तक कष्टमय हो जाता है कि वे विष खाकर ही शांति पाती हैं। पिता के मरने पर उसकी सम्पत्ति लड़कों में बँट जाती है । विवाह के पश्चात् जब लड़की अपने पिता के घर आती - है तो वह पराये घर की समझी जाती है । लड़की का अपने पिता के घर में बिना किसी . की आज्ञा कुछ भी लेने का अधिकार नहीं रहता । आगे जाकर जब लड़की के बच्चा होता है तब भाई भतीजों के सिर श्राफ़त आ जाती है, क्योंकि लड़की को खिचड़ी और छूछक आदि के रूप में कुछ दिया जाता है । इसी प्रकार जब भानजे का विवाह संस्कार होता है तब भी पीहर वालों पर विपत्ति की बाढ़ आ जाती है। परन्तु यह सब लेना-देना भाई भतीजों की इच्छा पर निर्भर रहता है । लड़की कुछ बोल नहीं सकती । और समाज का कानून भला कब दया कर सकता है ? पिता के घर से बच्ची बालिग हा चाहे नाबालिग दूध की मक्खी की तरह निकाल दी जाती है। विवाह होकर ससुराल आने पर लड़की सोचती है कि वहाँ कुछ आदर होगा, कुछ अधिकार मिलेगा, घर का अनादर वह पति की गोद में सिर रखकर भूल जायगी लेकिन आते ही बेचारी पर घर के काम का सब बोझा आ जाता है। फिर भी किसी को छाछ तक उठाकर देने का अधिकार नहीं रहता । उस समय उसकी हालत एक नवीन नौकर की सी रहती है। धीरे-धीरे यह नौकर होशियार होने लगता है । जब वह घर की सब बातें समझने लगती है तब उसे छोटे मुनीम और अन्त में यदि वह अच्छी योग्यता.