नारी समस्या अधिकार नहीं है वे यदि नौकरी न करें तो फिर क्या वे केवल काठ की पुतली के समान पुरुषों के इशारों पर नाचें ? पुरुष चाहे जितना खर्च कर सकता है, चाहे सो कर सकता है, स्त्री जरा भी ज़बान नहीं खोल सकती कि तुमने ये पैसे क्यों बरबाद कर दिये ? परन्तु स्त्री यदि शुभ कार्य में भी पैसा खर्च करना चाहती है तो पति से बहुत डरती है और उसकी आज्ञा लेती है। यदि उसने खुशी से कुछ दे दिया तो बेचारी कुछ कर सकती है । बदले में गठरी भर अहसान भी अपने ऊपर लाद लेती है । ऐसे बहुत थोड़े लोग होते हैं जो स्त्रियों पर पूर्ण विश्वास रखते हों और कमाई का सारा पैसा उन्हें सौंप देते हो । यदि स्त्रियों को अपने पति की कमाई पूर्ण स्वतन्त्रता से खर्च करने का अधिकार मिल जाय तो शायद वे नौकरी करना पसन्द न करेंगी । पुरुष स्त्रियों को तुच्छ दृष्टि से देखते हैं । वे समझते हैं कि स्त्रिया मुफ्त में पड़ी पड़ी खाती हैं । हमारे यहाँ के मजदूरों की हालत भी स्त्रियों से अच्छी रहती है। वह मालिक के नाराज़ होने पर नौकरी को ठुकराकर अपने सम्मान की रक्षा कर सकता है । स्त्रियों को यह अधिकार भी नहीं है । आज से ही नहीं, प्राचीन काल से ही स्त्रिया इस दृष्टि से देखी गई हैं । राम ने कर्तव्य पालन के लिये निरपराध सीता को घर से निकाल दिया था। धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रोपदी को जुए की बाज़ी में लगा दिया। इन सब बातों से यह पता चलता है कि हिन्दुओं के त्रेता या द्वापर युग में भी स्त्रियों और पुरुषों के अधिकार समान नहीं थे । आज तक जितना भी इतिहास देखने को मिलता है उसमें यह कहीं नहीं दिखाई देता कि कोई स्त्री अपने पति को जुए में हार गई या किसी स्त्री ने अपने पति को घर से निकाल दिया । झूटी बात पर तो दूर रहा, सच्ची बात पर भी स्त्री पति से कुछ नहीं कह सकती क्योंकि पति कमाता है, इसलिये चाहे जो कर सकता है । वैसे तो हमारे धर्म- शास्त्रों में लिखा है कि पुरुष को स्त्री के साथ बराबरी का व्यवहार करना चाहिये; स्त्री पुरुष की अधागिनी है आदि । परन्तु इसका पालन कितने लोग करते हैं ? माँगने से तो भीख भी नहीं मिलती, अपने अधिकार मिलने तो दूर रहे । इसलिये स्त्रियों को इस योग्य बनना चाहिये कि वे अपने अधिकार ले सकें । जब स्त्रिया योग्य बन जायँगी तो किसी की ताकतं नहीं कि उनके अधिकारों को दबाकर रखे। इसके लिये स्त्रियों को ऐसे-ऐसे हुनर सीखने चाहिये जिनके द्वारा वे कम से कम अपना खर्च अवश्य चला सके । जिस दिन पुरुष समझ लेंगे कि स्त्रिया हमारी आश्रिता नहीं हैं उस दिन वे अपने श्राप स्त्रियों का सम्मान करने लगेंगे। सम्भव है,. स्त्रियों के घर से बाहर निकलने पर
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