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पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/८२

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नारी-समस्या घर वाले का हाथ अपने हाथ में लेकर उछलता हुआ कहता है “दाई जी मैं डाक्टर बन गया ।" अनुकरण करने की प्रवृत्ति मनुष्यों में ही नहीं, पशुओं तक में होती है । एक कौवा बोलता है कि दूसरे अनेक कौवे काव काव करके कान के परदे ढीले कर देते हैं । कुत्तों का मूंकना, गीदड़ का बोलना तो सभी जानते हैं। किसी का खेलते देखते हैं, तैरते देखते हैं, सिनेमा देखते हैं, तो स्वाभाविक ही दिल वैसा करने के लिये उत्सुक हो उठता है । यह सब तो है प्रत्यक्ष अनुकरण किन्तु अप्रत्यक्ष अनुकरण अधिक ध्यान देने योग्य होता है। किसी सभा में बैठे हुए मनुष्य का जंभाई लेते देखिये तो आसपास के कई मनुष्यों को जंभाई आ जायगी। माता-पिता, नौकर-चाकर, शिक्षक आदि के छोटे-छोटे व्यवहार, यहाँ तक कि भाव भी बच्चे से छिपे नहीं रहते । यदि माता में किसी विशेष रूप से स्वार्थ साधन करने की आदत होगी तो बच्चा प्रत्यक्ष रूप में उस आदत ग़लत रूप में पकड़ लेगा। माता-पिता का हृदय जैसा बाहर हो वैसा ही अन्दर होना चाहिये । दिखाने के लिये कोई उच्च काम करना और वास्तव में वैसा न रहना भी बच्चे पर अच्छा असर नहीं डालता; जैसे दिखाने के लिये खादी पहिनना और छिपे-छिपे विदेशी भी पहिन लेना । कई स्त्रिया कहती हैं कि हम रोज चखा कातती हैं किन्तु काततीं नहीं । बच्चा यह समझ लेता है । धोखा देना, झूठ बोलना, चोरी करना आदि गुण बच्चे पर इसी प्रकार अप्रत्यक्ष रूप में अपना असर डाल देते हैं । हर्बर्ट स्पेंसर का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को बालमनोविज्ञान का अध्ययन भलीभाँति करना चाहिये । इसके ज्ञान बिना किसी भी माता-पिता का जीवन पूर्ण नहीं कहा जा सकता । बाल मनोविज्ञान काफ़ी मनोरञ्जक एवं सुरुचिपूर्ण विषय है । इसके अध्ययन की उपेक्षा विषय को कठिन नहीं वरन सरल समझने के कारण ही होती है । अध्ययन इसका आवश्यक है । इससे इतना तो स्पष्ट ही है कि माता पर सन्तान की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है जिसे उठाने के लिये माता का पूर्व तैयारी की आवश्यकता है ।