नारी समस्या ८२ कम हो जायगी । मध्य-भारत तो हिन्दीभाषी प्रान्तों में भी पिछड़ा हुआ है। इतिहास के देदीप्यमान नक्षत्रों की इस पुण्य जन्मभूमि में नारी- समाज की यह तन्द्रा क्लेशदायक है । इस देश का प्राचीन इतिहास उज्वल है । इन्दौर, उज्जैन,रतलाम और बुन्देलखण्ड,जयपुर,उदयपुर आदि में कोनसी ऐसी रियासत है जिसने स्वतन्त्रता की वेदी पर रक्तदान नहीं किया ? अहिल्या और लक्ष्मीबाई की कहानिया तो कल की ही हैं। मध्य भारत की चप्पा-चप्पा भूमि वीर, वीरांगनाओं के बलिदान और शौर्य से उज्वल है । हमारा इतिहास खड्ग से लिखा गया है । उदारता हमारा मूलमन्त्र रहा है । प्राणों का आदर्श से अधिक मूल्यवान हमने कभी नहीं समझा। ऐसी स्थिति में यदि आज कोई कहे कि हमारे भारत की महिलायें अन्य देशों से पिछड़ी हुई है तो अवश्य हमें क्लेश. हागा । हाँ, तो मैं कह रही थी कि नारी-समाज की जो चतुर्भुखी उन्नति हम देख रहे हैं वह वर्ग-विशेष तक ही सीमित है। साधारण तौर से भारत के किसान के समान भारत की स्त्री भी वहाँ की वहीं है । चौका, चूल्हा और चक्की उसकी समस्यायें हैं । सास, ननद, देवरानी, जेठानी की समस्यायें आज भी ज्यों की त्यां उसके चारों ओर मँडरा रही है । सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक अन्धविश्वासों का भार वह आज भी अवनतशिर ढाये जा रही है । इस प्रकार आप देखें तो आप का इस देश में स्त्रियों के दो वर्ग मिलेंगे । एक तो वे हैं जो विश्व की उन्नत से उन्नत महिलाओं के समकक्ष खड़ी हो सकती हैं और दूसरी वे जो अभी प्रस्तरयुग से आगे नहीं बढ़ पायीं । संसार के किसी देश में दो वर्गों के बीच इतना अन्तर शायद ही देखने को मिले । मैं मानती हूँ, कि इसका कारण है निर्धनता और निधनता के मूल में है हमारी वर्तमान शासन-पद्धति जिसका अन्त होने से ही महिला-समाज में ज्ञान की किरण पहुँच सकती है। किन्तु यही एकमात्र कारण नहीं है । हम इस स्थिति में भी चाहें तो कुछ कर सकते हैं । स्त्री का समाज में कितना महत्वपूर्ण स्थान है, यह बतलाने की आवश्यकता - नहीं। वह वृद्ध पिता के नैराश्य और अवसाद से भरे जीवन में मधुर-मधुर हास बिखेरने वाली चन्द्रकला है । भाई के उच्छृखल और नीरस क्षणों को दिव्य सात्विक सौन्दर्यमय स्नेह से अभिषिक्त कर शान्त, सरस और मधुर कर देने वाली पीयूषधारा है। संघर्षमय निष्ठुर जगत के भयावह आवर्ती में चकराते, उताल तरंगों के थपेड़े खा-खा कर कभी इधर, कभी उधर टकराते, विक्षिप्त यौवन की एकमात्र आशा-रज्जु है। थके मादे, जीवन से ऊबे, हेमन्त के निर्मम आघातों से निष्पत्र, निष्प्राण, अनिच्छित. प्राणों का भार ढोते
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