पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१४१

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सबी वीरता सत्त्वगुण के समुद्र में जिनका अंत:करण निमग्न हो गया वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं । वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिये संसार के सब अगम्य माग साफ हो जाते हैं । आकाश उनके ऊपर बादलों के छातं लगाता है । प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती है । हमारे असली और सच्चे राजा ये ही साधु पुरुष हैं । हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चाँदी से जके बर्क सिंहासन पर बैठने वाले दुनिया के राजाओं को ता, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिंडोपजीवी होत हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये जरी, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हरदम कांपत रहते हैं । इंद्र के समान ऐश्वर्यवान् और बलवान् होने पर भी दुनिया के ये छोटे "जार्ज" बड़े कायर होते हैं। क्यों न हो, इनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती । दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है । हाँ. जब कभी किसी अक- बर का राज लोगों के दिलों पर होता है तब इन कायरों की बस्ती में मानों एक सच्चा वीर पैदा होता है। एक बागी गुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई। यह गुलाम कैदी दिल से आजाद था। बादशाह ने कहा- मैं तुमको अभी जान से मार डालूँगा। तुम क्या कर सकते हो?" गुलाम बोला-"हाँ, मैं फांसी पर तो चढ़ जाऊँगा; पर तुम्हारा