पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१९

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थे वह प्रायः चुपचाप ही करते थे, क्योंकि नाम की इन्हें उतनी इच्छा नहीं रहती थी। औरों का शिक्षक बनने की अपेक्षा ये स्वयं विद्यार्थी बनना अधिक पसंद करते थे । इसलिये इनके समय का अधिकांश पुस्तकावलोकन में ही बीतता था । इनके प्रिय शिष्यों में खेतड़ी के राजा जयसिंह थे जिनकी ज्येष्ठा भगिनी महारानी सूर्यकुमारी शाह पुराधीश राजाधिराज उम्मेदसिंहजी की पत्नी थीं। महारानी की छोटी भगिनी महारानी चद्रकुमारी प्रतापगढ़ राज्य की राजमाता हैं । इन दोनों बहनों का हिंदी पर अत्यंत प्रेम था। इन दोनों बहनों से पंडित चंद्रधर शर्मा का अत्यंत स्नेह था जिससे उनके पांडित्य के विकास में बहुत सहायता पहुँची । गुलेरीजी के सतत उद्योग से महाराज उम्मेदसिंह ने अपनो स्वर्गीया पत्नी की स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिये बीस हजार रुपया दान देकर काशी नागरी- प्रचारिणी सभा द्वारा सूर्यकुमारी पुस्तकमाला की स्थापना कराई। गुलेरीजी की लिखी तीन कहानियाँ 'सुखमय जीवन.' 'उसने कहा था' और 'बुद्धू का कांटा' प्रसिद्ध हैं। ये तीनों कहानियाँ भिन्न भिन्न परिस्थितियों के सजीव चित्र उपस्थित करती हैं जो गुलेरीजी की प्रतिभा की छाप लग जाने से अत्यंत मनोहर हो गई हैं। 'सुखमय जीवन' में एक नवयुवक का चित्र खींचा गया है जिसने अपनी विद्या के बल एक पुस्तक लिख डाली है पर जिसे अभी तक संसार का अनुभव नहीं हुआ है। परिस्थितियों ने उसे ऐसा घेरा है कि उसकी आँखें खुल