पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२०२

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(१०) पवित्रता ब्रह्मकांति अनेक सूर्य प्रकाश के महामंडल में घूम रहे हैं, अनंत ज्योति इधर उधर और हर जगह बिखेर रहे हैं। सफेद सूर्य, पीले सूर्य, नीले सूर्य और लाल सूर्य, किसी के प्रेम में अपने अपने घरो में दीपमाला कर रहे हैं। समस्त संसार का रोम रोम अग्नियों की अग्नि से प्रज्वलित हो रहा है। परमाणु ब्रह्मकांति से मनोहर रूपों में सजे हुए, ज्याति से लदे हुए, जगमग कर रहे हैं । परमाणु सूर्य-रूप हो रहे हैं और सूर्य परमाणु-रूप है। सुंदरता सारी लज्जा को त्याग, घर-बार छोड़, अनंत पर्दो का फाड़ खुले मुंह दर्शन दे रही है। बालकां, नारियां और पुरुषों के मुखो की लाली और सफेदी झड़ रही है। गुलाब, सेब और अगूर के नरम नरम और लाल लाल कपोलों से फूट फूट कर निकल रही है। प्रातःकाल के रूप सिर पर नरम नरम और सफेद सफेद रुई का टोकरा उठाए हुए किस अंदाज से वह आ रही है। सायंकाल होते अपने डुपट्टे के सुर्ख फूलों से फिर कुल संसार से होली खेलती हुई वह जा रही है । झरने, चश्मों और नदी-नालों में नाच रही है। हिमालय की बर्फा में लोट रही है । सजे धजे जंगल और रूखे १६२