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पवित्रता

परंतु ज्यों ज्यों समय गुजरता जाता है त्यों त्यों मृत्यु और दुःख भूख और नग्नता इस देश में बढ़ रही है । क्या ब्रह्मज्ञान का फल यही है ? महाराज ! सरस्वती देवी से तो आप छ: महीने हारे रहे, क्यों न आपने हार मान ली और उस देवी को अपने सिंहासन पर बिठाया और क्यों न आप इस देश में इस देवी का राज्य अटल कर गए । आप मेरे देशनिवासियों की माता पिता हैं। फिर यदि अपने हाथों स्त्री और कन्या को राजतिलक दे जात तब क्या शंकर का इस देश में जन्म लेना कभी ऐसा असंभव होता, जैसा अब हुआ है ? मैं आपका बागी पुत्र आपसे प्रेम की लड़ाई करने आया हूँ। आपको यह राज्य अब देना ही पड़ेगा । आपके चरण इस पृथ्वी को स्पर्श कर चुके हैं। इस देश की रज को आपका स्वरूप मानकर मैं तो अब लो यह राज्य दिए देता हूँ।

जब तक आर्य कन्या इस देश के घरों और दिलों पर राज्य नहीं करती तब तक इस देश में पवित्रता नहीं आती! जब तक देश में पवित्रता नहीं आती, तब तक बल नहीं आता। ब्रह्मचयर्य का प्राचीन आदर्श सुख नहीं दिखलाता, देश में पवित्रता लाने का हे भगवन् ! अब तो पहला संस्कार भारत-कन्या को राज्यतिलक देना है।

सच है, देश में अपवित्रता समष्टि रूप से है। एक दो को यदि पवित्रता किन्हीं और साधनों से आ भी गई तो वह साधन क्या हुए जिन्होंने मेरी और तेरी आँख ठीक न की।