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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२४८

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निबंध-रत्नावली

हयग्रीव या हिरण्याक्ष दोनों में से किसी एक दैत्य से देव बहुत तंग थे । कवि कहता है-

विनिर्गतं मानदमात्ममंदिराद्भवत्युपश्रुत्य यदृच्छयापि यम् ।
ससंभ्रमेंद्रद्रु तपातितार्गला निमीलित क्षीव भियामरावती ॥

महाशय यों ही मौज से घूमने निकल हैं। सुरपुर में अफवाह पहुँची। बस, इंद्र ने झटपट किवाड़ बंद कर दिए, आगल डाल दी। मानो अमरावती ने आँखें बंद कर ली।

यह कछुआ-धरम का भाई शुतुर्मुर्गधरम है। कहते है कि शुतुमुर्ग का पीछा कीजिए ता वह बालू में सिर छिपा लेता है समझता है कि मेरी आँखों से पीछा करनेवाला नहीं दीखता तो उसे भी मैं नहीं दीखता। लंबा चौड़ा शरीर चाहे बाहर रहे, आँखें और सिर ता छिपा लिया ! कछुए ने हाथ, पाँव, सिर भीतर डाल लिया।

इस लड़ाई में कम से कम पाँच लाख हिंदू आगे-पीछे समुद्र पार जा पाए हैं। पर आज काई पढ़ने के लिये विलायत जाने लगे तो हनोज रोज अव्वल अस्त ! अभी पहला ही दिन है ! सिर रेत में छिपा है !!