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निबंध-रत्नावली
से फिनीशियन व्यापारियों से। उनसे हमने पण धातु पाया जिसका अर्थ लेन-देन करना, व्यापार करना है। एक परिण उनमें से ऋषि भी हो गया जो विश्वामित्र के दादा गाधि या गाधि की कुर्सी के बराबर जा बैठा। कहते हैं कि रसी का पोता पाणिनि था जो दुनिया को चकरानेवाला सवौंग सुंदर व्याकरण हमारे यहाँ बना गया। पारस के पशवो् या पारसियों से काम पड़ा तो वे अपने सूबेदारों की उपाधि क्षत्रप या क्षत्रपावन् या महाछत्रप हमारे यहाँ रख गए और गुस्तास्प, विस्तास्प के वजन के कृश्वाश्व, श्यावाश्व, बृहदश्व आदि ऋषियों और राजाओं के नाम दे गए। यूनानी यवनां से काम पड़ा तो वे यवन की स्त्री यवनी ता नहीं, पर यवन की लिपि यवनानी शब्द हमारे व्याकरण को भेंट कर गए। साथ ही बारह राशियाँ मंप, वृष, मिथुन आदि भी यहाँ पहुँचा गए । इन राशियों के ये नाम तो उनकी असली ग्रीक शकलां के नामौं के संस्कृत तक में हैं, पुराने ग्रंथकार तो शुद्ध यूनानी नाम प्रार, तार, जितुम आदि काम में लेते थे ! ज्योतिष में यवनसिद्धांत को आदर से स्थान मिला। वराहमिहिर की स्त्री यवनी रही हो या न रही हो, उसने आदर से कहा है मि म्लेच्छ यवन भी ज्योतिःशास्त्र जानन से ऋषियों की तरह पूजे जाते हैं। अब चाहे वेल्यूपेबल सिस्टम भी वेद में निकाला जाय पर पुराने हिंदू कृतन और गुरुमार नहीं थे। सेल्यूकस निकेटर की कन्या चंद्रगुप्त मौर्य के जनाने में आई. यवन