पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२५१

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मारोस मोहिं कुठाउँ

सन्दूतों ने विष्णु के मंदिर में गरुडध्वज बनाए और यवन राजाओं की उपाधि सोटर त्रातार का रूप लेकर हमारे राजाओं के यहाँ आलगी। गंधार से न केवल दुर्योधन की मा गांधारी आई, बामवाली भेड़ों का नाम भी आया। बल्ख से केसर और होंग का नाम बाल्हीक आया । घोड़ों का नाम पारसीक, कांबोज, वनायुज, बाल्हीक आए । शकों के हमले हुए तो शाकपार्थिक वैयाकरणों के हाथ लगा और शक संवत् या शाका सर्वसाधारण के। हूण वंच (Oxus) नदी के किनारे पर से चढ़ आए तो कवियों को नारंगी की उपमा मिली कि ताजा मुड़े हुए हूण की ठुड्डी को सी नारंगी। कलचुरि राजाओं को हूणों की कन्या मिली। पंजाब में वाहीक नामक जंगली जाति आ जमो तो बेवकूक, बौड़म के अर्थ में (गोवा- हीक:) महाविरा चल गया। हाँ, रोमवालों से कोरा व्यापार ही रहा पर रोमक सिद्धांत ज्योतिष के कोश में आ गया। पारसी राज्य न रहा पर सोने के सिक्के निष्क और द्रम्म (दिरहम) और दीनार (डिनारियस ) हमारे भंडार में आ गए। अरबों ने हमारे हिंदसे' लिए तो ताजिक, मुथहा, इत्थशाल आदि दे भी गए। कश्मीरी कवियों को प्रेम के अर्थ में हेवाक दे गए। मुसलमान आए तो सुलतान का सुरत्राण, अमीर का हम्मीर, मुगल का मुंगल, मसजिद का मसीति: कई शब्द श्रा गए। लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान अब एक हो रहा है, हम कहते हैं कि पहले एक था अब बिखर रहा है। काशी की

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