पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२६
निबंध-रत्नावली

रहता है तो उसने उसे सिर धुनता हुआ देखकर झिड़ककर कहा हो “कुशीलवों की दुम बना जाता है ! तेरे जैसे जब कुशीलव हो जायँगे तब अयोध्या भर में किसी को नींद नहीं लेने देंगे।'

यों होते होते यदृच्छा शब्द कुशीलब का अर्थ गवैया बज- वैया मात्र हो गया । जैसे बुड्ढे वशिष्ठ के कारण हर एक आदरणीय वृद्ध को वशिष्ठ कहते हैं ( खालक बारी का बसीठ= पैगंबर ) वैसे उन सुचतुर गवैयों के कारण सभी गाने बजाने- चाल कुशीलव कहलाने लगे । पीछे कई सौ वर्षों बाद जब इस शब्द की असली उत्पत्ति को लोग भूल गए थे, किसी अक्षरकीट पंडित ने अपने समय की गवैयों की घृणा को देखकर कुत्सितं शीलं वाली भानमती के कुनबे की सी व्युत्पत्ति गढ़ दी। वंश दो तरह चलता है, विद्या से और जन्म से, तो क्यों कुशीलवों के जन्मवंशज अपने वंशकर्ताओं की विद्या सं घृणा करते हैं ?


एक और विनोद की बात है; संस्कृत भाषा के व्याकरण केअनुसार गोत्र के सब व्यक्तियों का नाम गोत्रकार के नाम से चलता है। कुशिक के वंश के लोग कुशिका: कहलाएँगे ('एष वः कुशिका वोरो'-ऐतरेय ब्राह्मण) और भरत के वंश के सब लोग भरताः ('एष वो राजा भरताः-कृष्ण यजु०) । इस प्रकार से चंद्रवंशी दुष्यंत के पुत्र शकुंतला-गर्भज भरत के वंश के लोग भरताः कहलाएँगे और कुशीलवों के वंश के कुशीलवाः । और संस्कृत-साहित्य में 'भरता:' और 'कुशीलवाः' यह नाचने गाने बजाने में चतुर लोगों का नाम है !!!