यदि यह कहा जाय कि गवयों का नाम कुशीलव रामचंद्र के युत्र लव और कुश से पुराना है तो प्रमाण न होने पर भी इसमें इष्टापत्ति है। तो यों हुआ होगा कि दो चतुर बालक कुशीलव (= गवए) अयोध्या में आए और पहचान होने पर राजपुत्र मान लिए गए। उनका नाम किसी को नहीं मालूम था। 'कुशीलवों को राजा ने अपना पुत्र पहचान लिया'-'अब कुशोलव हमारे राजा बनेंगे-इस प्रकार की बातें अयोध्या में होते होते लोग उन्हें कुशीलव ही कहने लग गए। जैसे बड़े पहलवान वा पंडित का नाम कोई नहीं जानता या लता वरन् उन्हें पहलवानजी या पंडितजी कहता है वैसे ये दोनों भाई कुशीलव ही कहे गए। पीछे उसी नाम को फाइकर उनके नाम लोगो ने कुश और लव रख लिए। क्योंकि पहले कहा जा चुका है कि ये निराले से नाम हैं और संस्कृत साहित्य में शायद और कहीं पाए नहीं जाते । और इनके निरालपन ही को देखकर और कुशीलव से इनका निकलना न सोचकर कई सौ वर्षों पोले (और उस समय गानविद्या और उसके प्रचारकों से गर्दा उत्पन्न हो गई हो) यह द्रविद प्राणायाम से बादरायण संबंध निकाला गया कि वाल्मीकि ने उनके गर्भक्लेशों को कुश भोर लव ( =गोपुच्छ ) से मिटाया था इससे उनके नाम कुश और लव रखे गए। जिस एक गर्भ में जोदले भाई हैं उसके क्लेश मिटाने के लिए न्यारे न्यारे उपकरण कैसे लिए गए बह जैसे विचारणीय है वैसे यह अप्रमाण कथा भी विचारणीय है कि एक
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