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निबंध-रत्नावली

 दिन लव को सोकर सीता व्याकुल हो रही थी तो मुनि ने कुछ पर छींटा मारकर एक दृसग बालक बना दिया ! इससे एक पुत्रवाली सीता के दो पुत्र हो गए !! और यह बात ही न्यारी है कि ज्यप वुश उस कथा में कनिष्ठ हो जाता है !!!

चाहे जो हो, चाहे उन दो राजकुमारों के पीछे गवैए कुशीलन कहलाए हों और चाहे गवैया होने के कारण वे दोनों कुशोलव कहलाए हों-इसमें संदेह नहीं कि वे शब्दब्रह्म के नए विवर्ष आदिकाव्य रामायण के चतुर गानेवाले थे। उनके गानवेत्ता होने में कोई संदेह नहीं। यदि रामचंद्र की ऐतिहासिकता में किसी को संदेह हो तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि रामचरित आदिकवि की कल्पना है। यह बात भी हमारे काम की है, क्यों क पुराने-अति पुराने- समय के .कवि की दृष्टि में ऐसे चक्रवी राजा के पुत्र और भविष्य चक्रवर्तियों को गानवेत्ता कहने में कोई संकोच न जान पड़ा या लज्जा नहीं आई। उस समय के पाठक भी चक्रवर्ती के लड़कों को गाता हुआ देखकर "अब्रह्मण्यं, अब्रह्मण्यं" नहीं पुकारते होंगे। .

यह माना कि आजकल संगीत नीच संग से कुरुचिकारक हो गया है, पर कृसंग से कौन चीज नहीं बिगड़ जाती? और उत्तम विद्या को नीच से, स्वर्ण को अपवित्र जगह से, अमृत की विष से, स्त्रीरत्न को दुध्वुल से लेने के विषय में भी तो नीति का एक श्लोक है न ?