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निबंध-रत्नावली

हैं,लेखों में देवकुलिक मिलता है । सती माता का देवल, सती की देवली यह अब तक यहाँ व्यवहार है । बङ्गाल में ऊँचे शिखर के छोटे मंदिर को दउली कहते हैं। राजपूताने में मन्दिर के अंदर छोटे मंदिर को भी देवली कहते हैं। पंजाबी में वह लकड़ी का सिंहासन, जिसमें गृहस्थों के ठाकुरजी रखे जाते हैं. देहरा कहलाता है। ग्राम तथा नगरों के नाम में देहरा पद भी उनके देवस्थान होने का सूचक है । जैसे प्राकृत देवल का संस्कृत रूप देवकुल लेखों में आता था, वेस राजाओं की उपाधि रावल का संस्कृत रूप राजकुल मिलता है । राजकुल का अथ राजवंश' है । मेवाड़ के राजाओं की रावल शाखा प्रसिद्ध है । उनके लेखों में 'महाराजकुल अमुक' ऐसा मिलता है । पजाबी पहाड़ी में सती के स्मारक चिह्न को देहरी तथा सतियों को समष्टि में 'देहरी' कहते हैं । या देवकुल


  • सतियों के लिये 'महासती' पद का व्यवहार सारे देश में मलने से देश की एकता का अद्भुत प्रमाण मिलता है । मेवाड़ के महाराणाओं की सतियों के समाधिस्थान को महासती कहते हैं, जैसे, 'दरबार महासत्यां दरसण करण ने पधार्या है'। मैसूर के पुरातत्त्व-विभाग की रिपोर्ट से जाना जाता है कि वहाँ पर सतीस्तभ 'महासतीकल' कहे जाते हैं । विपरीतलक्षणा से पजाबी पहाड़ी में 'महासती' या 'म्हासती' दुराचारिणी स्त्री के लिये गाली का पद हो गया है। पति के लिये सहमरण करनेवाली स्त्रियों को ही सती कहते हैं, किंतु कई देवलियाँ पोतासतियों की भी मिली हैं जो दादियाँ अपने पोते के दुःख से सती हुई।