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देवकुल

 पद देवमंदिर का वाचक भी है, तथा मनुष्यों के स्मारक-चिह का भी ।

सतियों तथा वीरों की देवलियाँ वहीं पर बनती हैं जहां उन्होंने देहत्याग किया हो। साँभर के पास देवयानी के तालाब पर क गोड़े की देवली है जो लड़ाई में काम आया था ।रजवाड़ों में राजाओं की छतरियाँ या समाधि-स्मारक बनते हैं। उनमें सुंदर विशाल चारों ओर से खुले मकान बनाए जाते


  • कोयम्बतुर जिले ( मद्रास ) में कुछ पुरानो समाधियाँ हैं। वे पांडुकुल कहलाती हैं । यह भी देवकुल का स्मरण है । ऐतिहासिक अंधकार के दिनों में जो पुरानी तथा विशाल चीज दिखाई दी, वही पांडवों के नाम थोप दी जाती थी, कहीं भीमसेन को कुंडो, कहीं पांडवों की रसोई । दिल्ली के पास विष्णुगिरि पर विष्णुपद का चिह्न ( बहुत बड़ा चरण ) है । उसे कई साहसो लोग भोमसेन के पाँव की नाप मानते ही नहीं, सिद्ध भी करना चाहते हैं। बहुत-से विष्णुपद मिले हैं, सभी इसी हिसाब से भोमसेन के पैर के चिह्न होने चाहिए । __ लेख के ऊपर कमल और सजे हुए घोड़े की मूर्ति है । नीचे यह लेख है-॥ १ श्रीरामजी (१) राजश्री नवाब मुकतार दौला बहादुरजी के मैं सन् १२२७; (२) संवत् १८६८ मितो वैशाख वदि ७ सोमवार के रोज जो बने; (३) र पै मगरा भयो तामैं पं० श्रीलाला जवाहर सींघजी को ( ४ ) घोड़ा सुरंग काम पायौ ताकी देवलो गभर मैं श्रीदेउदा (५) नीजी के ऊपर बनाई कारीगर षुअाजबषस गजघर नै बना; (६) ई॥