हैं। कहीं-कहीं उनमें शिवलिंग स्थापित कर दिया जाता है, कहीं अखंड दीपक जलता है, कहीं चरणपादुका होती हैं, कहीं मूति तथा लेख होते हैं, परंतु कई योही छोड़ दी जाती हैं। जोधपुर के राजाओं की छतरियाँ शहर से बाहर मंडोर के किले के पास हैं। जयपुर के राजाओं में जितने आमेर में थे, उनके श्मशान पर उनकी छतरियाँ आमेर में हैं, जो जयपुर बसने के पीछे प्रयात हुए, उनकी गेटोर में शहर के बाहर हैं । महाराजा ईश्वरीसिंहजी का दाहकर्म महलों में ही हुआ था, इसलिए उनकी छतरी महलों के भीतर ही है। डूंगरपुर में वर्तमान महारावल के पितामह की छतरी में उनकी प्रतिमा सजीव सदृश है बीकानेर के पहले दो-तीन राजाओं की छतरियां तो शहर के मध्य में लक्ष्मीनारायण के मंदिर के पास हैं, कुछ पुराने राजाओं की छतरियाँ लाल पत्थर के एक छोटे अहाते में हैं, बाकी राजाओं की छतरियाँ एक विशाल दीवाल से घिरे अहाते में कम से बनी हुई हैं। प्रत्येक पर चरणपादुका हैं जहाँ प्रतिदिन पूजा होती है । प्रत्येक पर मूति है जिसमें राजा घोड़े पर सवार बनाया हुआ है। जितनी रानियाँ उसके साथ सती हुई उनकी भी मृतियाँ उसी पत्थर पर बनी हुई हैं। शिलालेख प्रत्येक पर है जिसमें विक्रम संवत्, शक संवत्, मास, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, सूर्योदय घटी आदि प्रयाण के दिन का पूरा पंचांग दिया है। वहीं सहमरण करनेवाली रानियों, दासियों आदि की संख्या लिखी है। किसी में पाचक, पुरोहित, सेवक या
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