और कपिलवस्तु आदि नगरों का भी अपनी यात्रा-पुस्तक में वर्णन किया है। उसी के अनुसार अलेकजेडर, कनिंग् हम साहब ने “सहेत महेत" के खंडहर खुदाकर अनेक ऐतिहासिक बातों का पता लगाया जिनका वर्णन हम किसी दूसरे लेख में करेंगे।
बौद्धों के समय यद्यपि अयोध्या अवध की राजधानी न थी तथापि उसकी दशा ऐसी खराब न थी,जैसी पीछे मुसलमानों के समय में हुई । तब तक पुराने राजमंदिर और सुंदर देवस्थान तोड़े नहीं गये थे और न अयोध्यावासी ब्राह्मणों का रक्त बहाया गया था। चीनी यात्री के लेख से भी अयोध्या की पिछली दशा सुंदर ही प्रतीत होती है । सन् ईसवी से ५७, वर्ष पहले श्रावस्ति के बौद्ध राजा को जीतकर उज्जैन के प्रसिद्ध महाराज विक्रमादित्य ने आर्य्यराजधानी अयोध्या का जीर्णोद्धार किया। पुराने मंदिर, देवालय और स्थान सब परिष्कृत किए गए और अनेक नवीन मंदिर भी बनवाये गए । वह प्रसिद्ध मंदिर जिसको दुराचारी म्लेच्छ बादशाह बाबर ने सन् १५२६ ई० में तोड़कर भगवान् रामचंद्रदेव की जन्म-भूमि पर मसजिद खड़ी की, इन्हीं महाराज विक्रम ने बनवाया था। यदि अब तक वह मंदिर विद्यमान रहता तो न जाने उससें कैसे कैसे ऐतिहासिक वृत्तांतों का पता लगता।
श्रावस्ति ने आठ सौ वर्षो तक स्वतंत्रता का सुख भोगा। अंत को वह भी जननी अयोध्या के समान पराधीन हो दूसरा