पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/९

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( ५ ) पंडित माधवप्रसाद पर बहुत कुछ पड़ा और उन्होंने पुराणों तथा इतिहासों की कथा सुन सुनकर बहुत ज्ञान और धर्मभीरुता का भाव ग्रहण किया। अपने पिता से उन्होंने व्याकरण, काव्य, पुराण एवं धर्मशास्त्र आदि की शिक्षा प्राप्त की। इसके अनंतर बुलंदशहर के प्रख्यात पंडित श्रीधरजी से पढ़ा और अंत में काशी आकर महामहोपाध्याय पंडित राममिश्र शास्त्री से दर्शनशास्त्र और पंडित उमापति से साहित्य का पूर्ण अध्ययन किया। इसी बीच में मापने उर्दू, बँगला, मराठी, गुजराती और पंजाबी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। यह क्रम पचीस वर्ष की अवस्था तक बना रहा। इसके अनंतर वे कार्यक्षेत्र में उतर पड़े । इस क्षेत्र में उनकी जीवन-सरिता तीन धाराओं में प्रवाहित हुई-धर्म, देश और साहित्य । साहित्य-कार्य में उन्होंने बाबू देवकीनंदन खत्री के सहयोग से संवत् १९५७ में सुदर्शन नामक मासिक पत्र निकाला था। यह दो वर्ष चार महीने चलकर बंद हो गया। इसके बंद होने का कारण ग्राहकों का अभाव या अर्थ-संकट न था, प्रत्युत अनेक कार्यों में मिश्रजी के लिप्त हो जाने के कारण वे संपादन-कार्य के लिये जितना समय देना चाहिए उतना दे नहीं सकते थे। इस सुदर्शन द्वारा उन्होंने ऐसे सुन्दर निबंध लिखे कि जिनकी जोड़ के लेख उस समय तो मिलने दुर्लभ थे। जैसा उनमें पांडित्य का प्रतिबिंब झलकता है वैसे परिमार्जित, प्रांजल और पुष्ट भाषा के दर्शन भी होते हैं। मिश्रजो ने कोई ६० से ऊपर