सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७४ )

मारना सहज समझकर ऐसा कर उठाते हों। इससे हमारी समझ में तो और कोई स्वतत्रता न होने पर केवल इसीरीति मी स्वतत्रता को दिमाग का खलल समझना चाहिए । फिर मना जिनके विषय में हम इतना यक गए यह धुद्धि विभ्रम के रोगी हैं या स्वतत्र हैं?

परतत्रता के जो २ स्थान ऊपर गिना आए है उस ढंग के स्थलों पर स्वतत्रता दिखावै तो शीघ्र ही धृष्टता का फल मिल माना है। इससे स्वतत्र नहीं बनते। यदि परमेश्वर हमारा कहा मानें तो हम अनुरोध करें कि देव, पितृ,धर्म-ग्रन्यादि की निन्दा जिस समय कोई करे उसी समय उसके मुंह में और नहीं तो एक ऐसी फुडिया ही उपजा दिया कीजिए, जिसकी पीड़ा से दो चार दिन नींद भूख के लाले पडे रहें,अथवापों में हमारा चलता हो तो उन्हीं से निवेदन करें फि निदकमात्र के लिए जातीय कठिन दड ठहरा दीजिए, फिर देखें बाबू साध्य कैसे स्वतत्र हैं।