पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१०३

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इनकमटैक्स।

यदि इस शब्द का यही अर्थ है कि "आमदनी पर महसूल" दोन जाने हमारी सरकार ने हम लोगों की किस श्राय की वृद्धि देखी है जा यह दुःखद फर बाधा हे । पुराने लोगों से सुनते हैं कि "उत्तम खेती मध्यम बान अधम चाफरो भीख निदान", पर इस काल में यह कहावतपूर्ण रूपसेउलट गई है। बेती की दशा पर हमें कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं है। जो चाहे दिहात में जाके देख ले, विचारे कृषिकारों के बारहो मास दिन रात के कठिन परिश्रम करने और नीद नारि मोजन परिहरई' का ठीक नमूना बनने पर भी पेट भरना कठिन हो रहा है। क्या जाने, किसी भविष्यत्-शानी कवि ने भाजकश की दशा पहिले मे सोचके मद्य और विप पान करने के परावर ही हल-ग्रहण को भी त्याज्य समझा हो, और "हालाहल हलाहलम्" लिखा हो।

उससे उतरके व्यापार समझा जाता था, से कुछ कहना ही नहीं। हर शहर के प्रत्येक राजगारी की दशा मरकार को हम यों नही समझा सकते, जय तक न्याय दृष्टि से स्वयम् कुछ दिन किसी बाज़ार का वह गुम रूप न देखें। हम जितनी यडी २ दुकानें देखते हैं सभी भाय २ होती है। जिन्होंने हजारों रुपया अटका दिया है उनको ब्याज भी कठिन हो रहा है। दिवाले निकलना पेख सा हो गया है। अमीर फदाते हैं ये फी सैकडा दो तीर से अधिक न होंगे, जिन्हें रोजगार पेरे कुछ मिल रहता है, नहीं तो फेघल पूर्न सञ्चित द्रव्य ही से पुरानी साच वाधे घेठे है। ऐसा फोई कार ही नहीं, जो सरकार ने निज-इस्तगत न कर लिया हो। इस हालत में