पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/११२

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बदल जायेंगे | जरूर कुछ दाल में काला है। इनका यहां आना भेद से खाली नहीं है । अवश्य-

"कोई माशूक है इस परदए जगारी में"

अस्तु, बहुत कहने सुनने से मिला लिए गए। पर २६ तारीख को कुछ योले चाले नहीं। इससे सच को निश्चय सा हो गया कि दिनभर का भूला साम को घर आ गया होगा। पर २७ ता० को लीला दिखाना प्रारभ ही तो किया। श्राप जानते हैं शिवजी गरल-कठ तो हई है। उसकी झार हम मनुष्यों से कहा सही जाती है । श्राप बोलने जाते थे, लोग हिचकी ले लेके रद करते जाते थे । अत में जब श्रोतागण बिलकुल उकता गए तो 'गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ वाला मत्र पढने लगे । अस्तु, आप विराजे, और हमारे परमाचार्य (सभापति) श्रीयुत जार्ज यूल तथा श्री नवलविहारी वाजपेयीजी ने उस विप की शान्ति के लिए मत्र पाठ किए।

दूसरे दिन हमारे सी०एस०आई० महाशय अपनी काशी को पधार गए, और काग्रेस-रूपी कलानिधि का ग्रहण छूटा सवको आनद हुवा । जिसका वर्णन करने को बड़ा सा प्रथ चाहिए। जहां स्कूल के छात्रों तक को देश-भक्ति फा इतना जोश था कि रेल पर से डेलीगेटों को बड़ी प्रीति के साथ 'लाते थे, और डेरों पर सारा प्रबन्ध यडी उत्तमता से करते थे, तथा चपरास पहिन पहिन के व्याख्यान-मदिर फाइतजाम करते थे, और प्रतिपल प्रेम प्रमत्त रहते थे, प्रतिनिधियों की सुश्रूषा 'में ही अपना गौरव समझते थे, ( परमेश्वर करे कि हमारी गजराजेश्वरी इन वालटियरों को 'शीच चालटियर धनार्वे, 'और अपनी कीर्ति तथा हमारी राजमकि बढावें,) यहां दूसरों के मानद का क्या कहना है ! - 5