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तीस तारीख को सामाजिक व्यारवान हुए थे, और उसी दिन यहुतसे लोग विदा भी हो गए थे। उस दिन अवश्य सय सहदों को वैसा ही खेद छुपा होगा जैसा रामचन्द्रजी को चित्रकूट में छोडके श्री पादुका लिए हुप्प भरतजी के माप अयोध्यावासियों को घर लौटती समय हुया था । पर हम उसका वर्णन करके अपने पाठकों को वियोग-फया नहीं सुनाया चाहते । १८८६ में यम्बई की काग्रेस के लिए सन्नद्ध होने का अनुरोध और दूसरे अङ्क में प्रयाग फी काग्रेस के कर्तव्य सुनाने का इकरार करके इस अध्याय को यही समाप्त करते हैं।योलो "काग्रेस की जै बोलेगा सो निहाल होगा । घोखो, “महारानी विक्टोरिया की जै जै जै"।