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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१३४

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जिन रोगों से तुम पारहों मास घिरे रहते हो उनका हमने कभी नाम भी नहीं सुना था । तुम अपनी सभाओं में वाल्य- विवाह पाल्य विवाद मीसा करते हो, पर हम लोगों के भी व्याह १२ हो १३ र्प की अवस्था में होते थे तो भी निर्व- लता क्या है, यह हम जानते भी नहीं। क्योकि लडकाई में व्या होता था तो क्या हुवा, गौना तो सात वर्ष, पाच वर्ष अथवा कम से कम तीन वर्ष ही में होता था। इसके सिवा इम अपने यडे बूढों की लाज से अपनी स्त्री के साथ खुल- क बात भी बहुत कम करते थे। इसके सिवा धर्म का डर और अपने जमाने की चाल के अनुसार अपने अडोस पडोस पार-देश की स्त्रियों को उनकी उमर देखके किसी को चाची, किसी को दीदी, किसी को विटिया कहते थे, और सचमुच चसा ही मानते थे। हम तो न भी मानते, पर यह डर था कि हम बुराई करेंगे तो कोई मूड काट संगा, या मारते२ अधमरा फर डालेगा! वेश्याओं के पहा लोकलाज के मारे न जाते थे। कोई देख लेगा या सुन पावैगा तो नौधरी होगी।

यही मब यातें थीं कि हमारा बख अब भी तुमसे अधिक है। यह बातें तुम में कहीं हुई नहीं। तुम चाहते कि हम पनी यवुभाइन को लेके सैर करने पावें तो मानों वैकुण्ठ मिल जाय। गांव नगर की स्त्रिया तुम्हारे हिमान फुल ही नहीं। यदि घर की सनातन रीति के मारे मुद से चाची वहिनी इत्यादि कहने भी हो तो जी में यह जरूर समझते होंने किन हमारे चाचा की विवाहिता है न दमारे बाप की बेटी हैं। वेश्या के यहां जाना तुम अमीरी और जिन्दादिली समझते हो । धिकार है इस वृद्धि को! यदि परमेश्वर करे देश में यही चाल चल जाय कि व्याह २४-२६ वर्ष में हुया