पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५०

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प्रेमाचार है । धन्य गगे । सर्वदेवमयी गगा जिन्होंने कहा है, निहायत ठीक कहा क्योंकि-

शिव शिर मालति माल भगीरथ नृपनि पुण्य फल,
ऐरावत, गज गिरिपर' पविनव कठमालकल ।
श्री हरिपद नत्र चद्रकांतमणि द्रवित सुधारस,
ब्रह्म कमल मडन भवखंडन सुर सरवस ।

इत्यादि वाक्यों का स्मरण होते ही नवियत को ताजगी होत, है। फिर तुम्हें अमृतमयी क्यों न माने ?

'बहुतों का विश्वास बहुत पोथियों में लिखा है कि गगा मातक मरणानन्तर शिवत्व अथवा 'विष्णुव को प्राप्त होता है। श्रीमान् कविवर अब्दुल रहीम खां खानखाना, जो प्रकार के समय में सस्कृत और भापा के बडे अच्छे वेत्ता थे, सनका एक श्लोक बहुत प्रसिद्ध है--

मच्चुत चरण तरंगिनि ! शशिशेपर मौलि मालतीमाले । मम तन वितरण समये ,हरता देया न मे, हरिता ।

अर्थान् विष्णु वनाभोगी नो मुझे कृतघ्नता का दोष होगा, क्योंकि तुम उनके चरण से निकली कहाती हो। अतएव शिव यनाना, जिसमें तुम्हें शिर पर धारण करूं । अन्य मतवाले देख ले कि अच्छे मुसलमान भी हमारी गगा को क्या कहते हैं । फिर उन हिन्दुओं को हम पया कहें जो गगा की प्रीति नहीं करते!

हमारी समझ में मरने पर क्या होता है, यह नहीं पाता। पर जीते जी ब्रह्मा, विष्णु, महेश बना देती है, यस्तो हम प्रत्यक्ष दिखा देगें। किसारे नहाने को खडे हो तो पावके नीचे गगा बहती हैं, यह विष्णु भगवान का चिढ़ है। डुबकी लगाने