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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१६८

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उर्दू बीबी की पूंजी।

यदि आप किसी लाधारण वेश्या के घर पर कभी गए होंगे अथवा किसी जानेवाले से यातचीत को होगी तो छापको भली भाति ज्ञात होगा कि ययपि कभी कमा विद्वान्, धनवान, और प्रतिष्ठायान् लोग भी उसके यहां जा रहते हैं, और जो जाता है वह कुछ देही के आता है। एवं उन्हें बाहर से देखिये नो तेल, फुलेल, हार, पान, हुका, पीकदान, सच्चा, चा झूठा गहना, एव देखने में सुन्दर कपडे से सुमजित है, कमरा भी दो एक चिन तथा गही-तकिया आदि से सजा हुआ है, उनकी वोली-वानी, हाव-भाव भी एक प्रकार की चित्तोल्लासिनी सभ्यता से भरी है, दस पाच गीत गजल भी जानती है । पर उनकी नसलो पूजी देखिये तो दो चार रगीन गाटे पवे के कपडे तथा दोही चार सच्चे भूठे गहने अधच एक पा दो पलग और पीतज, टीन, महो श्रादि की गुडगुडी उडगुडी समेत दस पाच वरतन के सिवा और कुछ नहीं है। रुपया शायद राव असयाव मिला के सौ के घर धाट निशलें, चाहे न भी निगले । गुण उनमें केवल हाय मटका- फो कुछ गानामात्र, विद्या अशुद्ध फशुद्ध दसही बारह हिन्दी उग्दू के गीतमात्र एव मिष्टभाषण केवल इतना जिससे आपकुछ देपावें । बस, इसके सिवा और सानियां का नामही है।

उनके प्रेमी, या यो कहिए, अपनी धुरी शादत के गुलाम, उनको चाहे जैसालक्ष्मी,सरस्वती,रभा निलोत्तमा, लैली, शोरी, समझते हों, पर वास्तव में उनके पास पूरी मा जथा उतनी ही माल होगी जितनी हम फह चुके, वरच उससे भी न्यून ही होगी। कमी २ वे कह देती है कि हम फ़कोर है, या हम