आपके भिन्दुक हैं, यह बात उनकी शिष्टता से नदी, यग्च सच दी है। क्योकि सर से लेता है तो भी कुछ जुड़ नहीं सक्ता। यदि पदह चीस दिन गोई न जाय तो उन्हें वह नगर छोड देना पड़े, जता वे कई वर्ष रही है।
प्रिय पाठक ! ठीक वही हात उरदूजान का भी है। यद्यपि र २ सस्कृत, अगरेजी, अरयी को भी सहाय हे, और उसके चाहनेगाले उसे सारे जगत् की भाषाओं से उत्तम माने बेठे हैं, पर उगको वास्तविक पूजी यटि विचार- के देखिए तो आशिर अर्थात् किमी का चाहोवाला, माशूफ अर्थात् फोई रूपवान् व्यक्ति जिसे याशित चाहता हो, पाग अर्थात् वाटिका, गुरु अर्थात् फल, पुलगुल अर्थात् एक अच्छी घोली घोलनेवाला और फूलों में प्रताप रहने घाला पक्षी, यागवान अर्थात् माली, सैयाद अर्थात् चिडीमार, खिलवत अर्थात् एकान्त स्थान, जिलवत या मजलिस कई पक सुन्दर व्यक्तियों का समाज, शराव अर्थात् मदिरा, कनाथ अथात मास, साकी अर्थात् मद्य पिलानेवाला, मुतरित अर्थात् गवेया, रकीय-दुशमन गर अर्थात् जिसे तुम चाहते हो उसका दूसग गहनेवाला, नासिह अर्थात् मद्य ओर वेश्यादिको ससर्ग से रोकनेवाला, वायज अर्थात् उपदेशक,
पानमान अर्थात भाग्यवरा, इतनी ही पाते है जिन्हें उलटफेर फेघर्णन किया करो, आप बड़े अच्छे उरदूदा हो जायगे।
माशूक के रूप, मुग, नेर, केशादि की प्रशसा, अपनी सर्च शता का घमट, उसे गुल भोर शमश्च अर्थात् मोमबत्ती एव अपने को युगबुत शोर पर्वाना अर्थात् पतग से उपमा