पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७०

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दे दिया करो, रफीब इत्यादि पर जल २ के गानी दिया करो, यस उरदू का सर्वख आपको मिल जायगा ।

चाहे गद्य हो, चाहे पद्य हो, चाहे कविता हो, चाहे नाटक हो, चाहे अखबार हो, चाहे उपदेश हो,सबमेंयही यातभरी है। यदि और कोई विद्या का विषय लिखना होतोसस्कृत,पंगता, नागरी, अरयो, फारसी,मगरेजी की शरण लीजिए। इनवीवी के यहा अधिक गुजायश नहीं है । और लिखना तो दरकिनार मुख्य २ शब्द ही लिखके किसी मौलवी से पढ़ा लीजिए, अरे म्या मजाही न घावेगा। हमारे एक मित्र का यह वाक्य फितना सशा है कि और सव विद्या हैं यह अविद्या है। जन्म भर पहा कीजिए, तेली के बेल की तरह एक ही जगह घूमते रहोगे ! सत्य विद्या के यतलाइए तो कै ग्रन्थ हैं ? हाय न जाने देश का दुर्भाग्य कव मिटेगा कि राजा प्रजा दोनों इस मुलम्मे को फेंक के सच्चे सोने को पहिचानेंगे जानते सब हैं कि पूजी इतनी मात्र है, पर प्रजा का समाग्य, राजा की रीझ- बूझ और क्या कहा जाय।

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